व्यापारी गंगा राम जी - Vyapari Ganga Ram Ji

व्यापारी गंगा राम जी (Ganga Ram Ji)

श्री गुरू अर्जुन देव जी, राम दास सरोवर के केन्द्र में हरि मन्दिर साहब की इमारत का निर्माण करवा रहे थे, उन्हीं दिनों देश में वर्षा न होने के कारण कई क्षेत्र सूखाग्रस्त थे। जिससे जनसाधारण के लिए अनाज का अभाव उनकी कठिनाइयों का कारण बना हुआ था। ऐसे में जिला बठिंडा नगर से एक व्यापारी अपना बाजरे का सुरक्षित भण्डार ऊँटों पर लाद कर अमृतसर की ओर चला आया। इस विचार से कि वहाँ नव निर्माण का कार्य चल रहा है अत: यहाँ अनाज के मुझे अच्छे दाम मिल सकते हैं क्योंकि सूखे के कारण गेहूँ इत्यादि अनाज का अभवा होगा। व्यापारी का अनुमान ठीक था। गुरू घर में प्रतिदिन लंगर में असंख्य लोग भोजन ग्रहण करते थे। कार सेवा (श्रमदान) का कार्य जोरों पर था, किन्तु अनाज आवश्यकता अनुसार प्राप्त नहीं हो रहा था। ऐसे में राँगा राम व्यापारी द्वारा गुरूदेव को संदेश प्राप्त हुआ कि आप उससे बाजरा खरीद सकते हैं। गुरूदेव ने आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उसके साथ एक अनुबन्ध किया। अनाज का मूल्य कुछ दिनों पश्चात् वैशाखी पर्व पर अदा किया जायेगा। दोनों पक्षों में सहमति हो गई और धीरे धीरे प्रतिदिन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए समस्त अनाज आँगाराम से खरीद लिया गया। राँगा राम का लक्ष्य पूरा हुआ। उसने अपने कर्मचारी और ऊँट वापिस भेज दिये और स्वयँ दाम वसूली के विचार से वहीं रूक गया।

राँगा राम व्यापारी ने संगत के उत्साह को देखा। उसके हृदय में भी इच्छा हुई कि वह भी संगत में सम्मिलित होकर कार सेवा अथवा श्रम दान में भाग ले। उसने ऐसा ही किया। वह अवकाश के समय गुरू दरबार में उपस्थित होकर, कीर्तन कथा और गुरूदेव के प्रवचन सुनता। धीरे धीरे गुरूदेव के प्रवचनों का उसके मन पर ऐसा प्रभाव हुआ कि वह गुरूदेव का शिष्य बन गया। उसके हृदय परिवर्तन ने उसे निष्काम सेवक के रूप में विकसित कर दिया। वैशाखी पर्व पर नई फसल के आने पर अनाज का अभाव समाप्त हो गया और दूर-दराज से संगत के आगमन से धन की कमी भी समाप्त हो गई। गुरूदेव ने एक दिन नॅगाराम व्यापारी को कहा कि वह अपने बाजरे के दाम कोष से प्राप्त कर ले किन्तु राँगा राम ने ऐसा नहीं किया, वह वहीं पर सेवारत रहने लगा। कुछ दिन पश्चात् गुरूदेव ने उसे फिर बुलाया और कहा – आप व्यापारी हैं। अत: कोषाध्यक्ष से अपना हिसाब ले लें। इस पर राँगाराम जी कहने लगे कि मैं पहले कभी व्यापारी था किन्तु अब नहीं रहा। वास्तव में मैंने पहले कच्चा धन संचित किया है जो कभी स्थिर नहीं रहता, किन्तु मैं अब पक्का धन संचित करना चाहता हूँ जो लोक-परलोक में मेरा आश्रय बने। गुरूदेव ने उसे फिर कहा – व्यापार अपने स्थान पर है क्योंकि वह आपकी जीविका है और गुरू भक्ति अपने स्थान पर है क्योंकि यह आध्यात्मिक दुनियां है। अतः आप अपने अनाज के दाम ले लें। किन्तु अँगा राम जी ने उत्तर दिया कि मेरे पास धन का अभाव नहीं है। मेरी अनाज के रूप में भी सेवा स्वीकार की जाये। जिससे मुझे परम आनन्द मिलेगा। गुरूदेव ने उसके हृदय परिवर्तन को अनुभव किया और उसकी निष्काम सेवा के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी और उसे आशीष दी और कहा – प्रभु ! आपकी मंशा पूरी करेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *