बचपन तथा बाल-कौतुक - Bachapan tatha Baal Kautuk

बचपन तथा बाल-कौतुक (Shri Guru Gobind Singh Ji)

जन्म के पहले साल से ही सभी को यह स्पष्ट नजर आने लगा था कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। अन्य बालकों से यह विलक्षण है। साधारण बालक भूख लगने पर या माँ की गोद से उतार कर जब उन्हें चारपाई पर लिटाया जाता है तो वे रोते हैं। पर बालक गोबिंद राय कभी भी रोते नहीं थे। उनका चेहरा सदा खिला रहता तथा जब भी कोई उन्हें आवाज देता तो वे मुस्कुराते हुए इधर-उधर देखते।

बैठना सीखने के बाद जब घिसटना सीखा तब भी वे अन्य बच्चों की तरह कमर झुका कर घुटनों के बल नहीं घिसटते थे। आप बैठे-बैठे ही घिसटना सीखे तथा बैठ कर ही घिसटते। जब चलना सीखा तो एकदम ही चलने लगे। अन्य बच्चों की तरह चलते हुए वे कभी भी नहीं गिरे। इस तरह सीधा चलने में उनका आत्म विश्वास प्रकट होता है। ये बातें सभी से भिन्न थीं।

जब और बड़े हुए अर्थात जब तीन साल के हुए तो वे आस-पड़ौस के बच्चों को इकट्ठा कर लेते। अपने खिलौने उनमें बाँट देते। कभी बच्चों को एक पंक्ति में चलाते तथा उनका नेतृत्व करते हुए उन्हें एक साथ कदम उठाने के लिए प्रेरित करते। ऐसा करना उनका शौक था।

मामा कृपाल चंद हर समय आपके साथ रहते तथा आपका ध्यान रखते। एक दिन नदी किनारे खेलने गये तो अपने मामा से आँख बचा कर पानी में चले गये। मामा कृपाल चंद ने देखा तो घबड़ा कर पीछे भागे पर वे यह देखकर विस्मित हुए कि बालक गोबिंद राय तैरते हुए किनारे पर आ गये। घर आकर जब इस घटना के बारे में बताया तो माता जी ने बड़ी चिंता व्यक्त की। पर मामा कृपाल चंद ने यह विश्वास दिलवाया कि वे जन्म से ही तैरना सीख कर आये हैं। इन्होंने हजारों-लाखों को तारना (पार लगाना) है। इसलिए वे स्वयं नदी में कैसे डूब सकते हैं।

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