बैठना सीखने के बाद जब घिसटना सीखा तब भी वे अन्य बच्चों की तरह कमर झुका कर घुटनों के बल नहीं घिसटते थे। आप बैठे-बैठे ही घिसटना सीखे तथा बैठ कर ही घिसटते। जब चलना सीखा तो एकदम ही चलने लगे। अन्य बच्चों की तरह चलते हुए वे कभी भी नहीं गिरे। इस तरह सीधा चलने में उनका आत्म विश्वास प्रकट होता है। ये बातें सभी से भिन्न थीं।
जब और बड़े हुए अर्थात जब तीन साल के हुए तो वे आस-पड़ौस के बच्चों को इकट्ठा कर लेते। अपने खिलौने उनमें बाँट देते। कभी बच्चों को एक पंक्ति में चलाते तथा उनका नेतृत्व करते हुए उन्हें एक साथ कदम उठाने के लिए प्रेरित करते। ऐसा करना उनका शौक था।
मामा कृपाल चंद हर समय आपके साथ रहते तथा आपका ध्यान रखते। एक दिन नदी किनारे खेलने गये तो अपने मामा से आँख बचा कर पानी में चले गये। मामा कृपाल चंद ने देखा तो घबड़ा कर पीछे भागे पर वे यह देखकर विस्मित हुए कि बालक गोबिंद राय तैरते हुए किनारे पर आ गये। घर आकर जब इस घटना के बारे में बताया तो माता जी ने बड़ी चिंता व्यक्त की। पर मामा कृपाल चंद ने यह विश्वास दिलवाया कि वे जन्म से ही तैरना सीख कर आये हैं। इन्होंने हजारों-लाखों को तारना (पार लगाना) है। इसलिए वे स्वयं नदी में कैसे डूब सकते हैं।