
20August
बाला प्रीतम दानापुर पहुँचे (Shri Guru Gobind Singh Ji)
गुरु परिवार पटना से चला, पूरा काफिला उनके साथ था। बाला प्रीतम एक पालकी में सवार थे। माता नानकी तथा माता गुजरी पालकी में तथा अन्य साथी बैल गाड़ियों पर सवार थे। पटना की संगत पहला पड़ाव दानापुर तक शब्द-कीर्तन करती हुई साथ आई। यह स्थान पटना से बीस मील की दूरी पर है। यहाँ जगता सेठ की दुकान भी थी। उसने सभी के ठहरने का प्रबन्ध किया था। पर बाला प्रीतम कहने लगे कि यहाँ पर एक माई (स्त्री) है, जिसने गुरुदेव पिता श्री गुरु तेग बहादुर को हांडी में खिचड़ी पका कर खिलाई थी। वे याद ही कर रहे थे कि वही माई संगत में आ गई। उसने विनती की कि वह उसी हांडी में साहिबजादा के लिए खिचड़ी पका कर लाई है तथा शेष संगत के लिए दाल-रोटी तैयार है। माई ने गुरु तेग बहादुर जी के खिचड़ी खा लेने के बाद उस • हांडी को सम्भाल कर रख लिया था। जब साहिबजादा श्री गोबिंद सिंघ जी ने खिचड़ी खाकर माई को आर्शीवाद दिया तो उसने अपने घर को गुरुद्वारा का रूप दे दिया जिसे अब भी ‘हांडी वाली संगत’ कहते है।