उस समय यहाँ का सिख मत का मुखिया भाई गुरबख्स था। वह संगत सहित बहुत सी वस्तुएँ भेंट स्वरूप लेकर आया। बाला प्रीतम सभी की भेंट स्वीकार करते तथा साथ-साथ ही जरूरतमंदों के बीच उन वस्तुओं को बाँट देते। जब भाई गुरबख्स ने विनती की कि आप सभी कुछ तो बाँट रहे हो, आप भी कुछ स्वीकार करें तो बाला प्रीतम ने मुस्करा कर कहा कि आप प्रसन्न हैं कि प्रेम से लाये उपहार को मैं स्वीकार कर रहा हूँ और हमारी खुशी इसमें है कि ये वस्तुएँ जरूरतमंदों तक पहुँच जाएँ। यह बातें सुनकर सभी हैरान हो गये थे। सभी बाला प्रीतम को नमस्कार करने लगे। वे कई दिन यहाँ रहे। बड़े-बड़े विद्वानों से विचार-विमर्श हुआ। इसी काशी का दूसरा नाम बनारस है।