गुरु परिवार का पटना से कूच करना (Shri Guru Gobind Singh Ji)

गुरु परिवार का पटना से कूच करना (Shri Guru Gobind Singh Ji)

गुरु तेग बहादुर जी आसाम से लौटने के बाद साहिबजादा के दर्शन करने के उपरान्त 23 दिन पटना में ठहरे। वे फिर आनन्दपुर साहिब चले गये तथा परिवार को कुछ समय और पटना में रुकने का आदेश दे गये।

बाल गोबिंद जी जब पाँच वर्ष से भी अधिक आयु के हो गये तो यह कहना प्रारम्भ कर दिया कि अब यहाँ अधिक नहीं रहना है और पिता जी के पास जाना है। इन्हीं दिनों में आनन्दपुर साहिब से गुरु जी का संदेश आ गया कि परिवार साहिबजादा को लेकर आनंदपुर आ जाये। यह आदेश मिलते ही परिवार ने पटना से कूच करने की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं। जब शहर में गुरु घर के प्रेमियों, संगत तथा विशेष रूप से उन लोगों को जो साहिबजादा गोबिंद सिंह से बहुत प्यार करते थे, इस बात का पता चला तो वे बहुत उदास तथा निराश हो गये। जो भी मिलने आता, दर्शन करते ही आँखें भर आतीं। राजा फतह चंद तथा उसकी पत्नी बाल गोबिंद को आलिंगन में लेकर इस तरह रोये जैसे कोख से जन्मे बच्चे से अलग होने पर माँ-बाप रोते हैं।

बाल गोबिंद ने एक कृपाण, एक कटार तथा अपनी पोशाक उनको निशानी के रूप में दी और कहा कि जब मन अधिक उदास हो तो इनके दर्शन करें। मेरे साथियों को पहले की तरह ही प्यार से बुलाकर पूरी-छोले खिलाते रहना। उन्होंने रोज शाम को बच्चों को बुलाकर पूरी-छोले खिलाने प्रारम्भ कर दिये।

पंडित शिवदत्त को भी जब उदास तथा निराश देखा तो बाल गोबिंद ने उसे आलिंगन में लेकर कहा-‘शिवदत्त! तुझे सुबह की पूजा के समय दर्शन हुआ करेंगे। तेरा कल्याण हो गया है। इसी तरह एक और महापुरुष जैता भगत को बाला प्रीतम ने धीरज देते हुए कहा कि प्यार से सुबह परमात्मा का नाम जपना तथा प्रभु भक्ति को ही जीवन का आधार बनाना। नाम जपते रहोगे तो उस समय मुझे अपने पास बैठा हुआ अनुभव करोगे।’

फिर संगत की ओर से अरदास हुई तो बाला प्रीतम ने कहा-‘साध संगत जी! मेरे शरीर का दर्शन करना चाहो तो मैं अपना खटोला (पालना) छोड़ कर जा रहा हूँ। जिसका जी उचाट हो दर्शन कर लिया करे। यदि मेरी आत्मा का दर्शन करना चाहो तो प्रातः काल दीवान में आकर शब्द में मन लगाओ तो मन में मेरे दर्शन हो जायेंगे।’

जब गुरु परिवार और बाल गोबिंद पटना से चले तो सजल नेत्रों के साथ बड़ी संख्या में संगत उन्हें शहर से दूर तक छोड़ने आई।

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