श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - Shri Guru Gobind Singh Ji

जगता सेठ सेवा करके मुक्त हो गया (Shri Guru Gobind Singh Ji)

(भव-सागर पार कर गया) जगता सेठ भी पटना का एक प्रसिद्ध व्यापारी था। उसकी दुकानें तथा स्टोर देशभर में थे। उस समय ऐसी दुकानों को कोठी तथा उनके मालिक को कोठीदार कहते थे। उसके पास अपार सम्पत्ति थी, पर बेटा नहीं था। पुत्र की इच्छा में उसने तीन विवाह किये, पर किसी से भी बेटा नहीं हुआ। गुरु तेग बहादुर जी जब पटना में आये तब उसने पूरे प्रेम तथा श्रद्धा से उनकी सेवा की। वह प्रतिदिन संगत में आता, कीर्तन सुनता। मन और आत्मा गुरु उपदेश सुनते। उसे मानसिक सन्तुष्टि तथा प्रसन्नता मिलती। एक दिन उसके मन में विचार आया कि यदि गुरु जी अपनी प्रसन्नता और खुशी से उसे पुत्र का उपहार दें तो उसके मन की यह अभिलाषा भी पूरी हो जाये। उसी दिन गुरु जी ने उसे विशेष रूप से अपने पास बुलाकर तीन सेब प्रसाद के रूप में दिये। वह सन्तुष्ट हो गया और घर आकर तीनों पत्नियों को एक-एक सेब खिला दिया।

अगले साल उसके घर तीनों पत्नियों से एक-एक बेटा हुआ। वह तो गुरु तेग बहादुर की पूजा करने लगा। गुरु जी पटना में नहीं थे इसलिए वह तीनों बेटों तथा पत्नियों को लेकर माता गुजरी जी के पास आया। वह बाला-प्रीतम, बालक गोबिंद जी के लिए बहुत से खिलौने तथा वस्त्र लेकर आया। उसने बाला प्रीतम से पूछा आप क्या पसन्द करेंगे?’ बालक गोबिंद ने तीर-कमान तथा सुन्दर कटार की इच्छा व्यक्त की तो वह दूसरे दिन ही दोनों वस्तुएँ ले आया। जितना समय बालक गोबिंद पटना में रहे जगता सेठ और उनका परिवार प्रतिदिन उनके दर्शनों के लिए आता रहा। वह दर्शन करता तथा बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट करके प्रसन्न होता।

जब बाल गोबिंद जी पटना से चलने लगे तो जगता सेठ ने उनके स्थान-स्थान पर स्वागत तथा ठहरने का प्रबन्ध अपनी दुकानों तथा स्टोरों के माध्यम से किया। उचित प्रबन्ध के लिए उसके औदमी पहले ही चले गये। जब पटना से साहिबजादा गोबिंद सिंघ चलने लगे तो जगता सेठ परिवार सहित उपस्थित हुआ और कहने लगा कि हमें आपके दर्शन किस तरह होंगे तो साहिबजादा गोबिंद जी ने कहा ‘प्रतिदिन गुरुद्वारा संगत में आना। संगत में आप सदा मेरे दर्शन करेंगे।

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