बाल रूप में गुरु साहिब बहुत ही सुन्दर लगते थे। उन्हें देखकर सभी मोहित हो जाते थे। उनके माता जी तथा दादी जी उनको सुन्दर वस्त्र पहनाते। उनकी माता को बहुत समय से एक पुत्र की इच्छा थी। स्वभावतः वे उस पर स्नेह-प्यार की वर्षा करते तथा बड़े स्नेह से उनका पालन-पोषण करते। पटना के कई धनाढ्य व्यक्ति गुरु साहिब के श्रद्धालु थे। धनाढ्य औरतें बाल-गुरु को सुन्दर वस्त्र तथा खिलौने भेट में देकर जातीं। उनके माता जी अपने पुत्र को एक बलवान नवयुवक के रूप में देखना चाहती थीं। वे बाल गुरु के सिर पर सुन्दर पगड़ी पहनातीं।
एक बार एक श्रद्धालु स्त्री उनके लिए बहुमूल्य परों से बनी एक कलगी लेकर आयी। उसमें कीमती मोती लगे हुए थे। माता जी को वह कलगी बहुत पसन्द आई। उन्होंने वह कलगी गुरु साहिब की पगड़ी पर लगा दी। कलगी लगाकर बाल गुरु बाहर खेलने के लिए चले गये। उसी दिन से लोग उन्हें ‘कलगीयाँ वाला पातशाह’ कहने लगे।