जो पहले से ही पढ़ कर आया है उसे किसी ने क्या पढ़ाना है। फिर भी विभिन्न भाषाओं के शब्दों तथा लिपि का ज्ञान कराना आवश्यक था। इसके साथ ही गुरु तेग बहादुर जी जानते थे कि भविष्य में उसने किस तरह के कार्य करने हैं। इसलिए उसी तरह का प्रशिक्षण उन्हें दिया जाने लगा। शस्त्र विद्या, घुड़सवारी, तीर चलाना, गतका खेलना तथा बंदूक चलानी सिखाने के लिए अध्यापक रख दिये।
साहिबजादा को गुरमुखी तथा फारसी अक्षरों का ज्ञान हर जस राय ने कराया जो भाई मति दास का भतीजा था। फारसी की उच्च शिक्षा के लिए पीर मुहम्मद काजी को नियुक्त किया गया। घर की पाठशाला में आपके साथ विद्या लेने वालों में भाई मनी सिंह, तारा आलम, कीर्तिया, शाम दास, गुलाब राय, मोहरी चंद तथा संगो के नाम लिखे हुए मिलते हैं। इतिहासकार लिखते हैं कि बालक गोबिंद जी जो एक बार सुन लेते उसे कभी नहीं भूलते थे। आपके कई खेल निश्चित किये गये। आप जब नदी किनारे जाते तुरन्त छलांग लगाकर तैरना प्रारम्भ कर देते। इसी तरह वे अधिक उत्साह तथा शारीरिक बल का प्रदर्शन करने वाले खेलों में रुचि लेते।