उसका एक मित्र, फतह चंद मैनी जो नगर का धनाढ्य तथा बड़े भू-भागका स्वामी था अपनी पत्नी के साथ घाट पर शिव दत्त के पास आया और कहने लगा-‘परमात्मा से हमारे लिए प्रार्थना करो कि वह हमें एक बेटा दे। हमारे पास बहुत जमीन-जायदाद है पर कोई वारिस नहीं है।’ पंडित ने उत्तर दिया- ‘मैंने तो कई बार परमात्मा से प्रार्थना की है पर मेरी प्रार्थना सुनी नहीं गई। अब अपने शहर में परमात्मा का विशेष पुत्र जो सभी शक्तियों का स्वामी है, आया है।वह गुरु तेग बहादुर जी का बेटा है। उसे याद करो, वह आपकी इच्छा अवश्य पूरी करेगा। वह ‘बाला प्रीतम’ है। बस उसी दिन से फतह चंद और उसकी पत्नी बाल गोबिंद को दिन रात याद करने लगे। और ‘बाला प्रीतम’ की हर समय रट लगाने लगे।
काफी दिनों बाद जब एक दिन बड़े विश्वास के साथ उन्होंने याद किया; ‘बाला प्रीतम’ का स्मरण किया तो बालक गोबिंद सिंघ आठ-दस बालकों सहित एक दिन फतह चंद के घर पहुँच गये। वे समाधि में बैठी फतह चंद की पत्नी की गोद में जाकर बैठ गये और हँसते हुए कहा-‘माँ।’ रानी की आँख खुली उसने दर्शन किये और निहाल (प्रसन्न) हो गई। पहली बार बाल गोबिंद के दर्शन करके उसका मन सन्तुष्टि तथा प्रसन्नता से भर गया।
बाल गोबिंद ने और कौतुक दिखाया और कहने लगे-‘माँ, भूख लगी है। ‘अभी लो’ कह कर उसने पति से कहा-‘तुरन्त मिठाई मँगवाओ तथा बाहर जो भी फल मिले ले आओ।’
‘हमने तो वह छोले-पूरी खानी है जो आपने अन्दर बना कर रखी हैं।’ बाल गोबिंद ने कहा।
लो जी’उसने झटपट छोले-पूरियाँ लाकर उनके आगे रख दीं। बाल गोबिंद ने अपने पवित्र हाथों से सभी को परोसीं। सभी को देने के बाद एक पूरी खुद भी खा ली। बस, उस दिन के बाद बाल गोबिंद उनके घर आने-जाने लगे और वहाँ साथियों सहित छोले-पूरी खाते। राजा फतह चंद तथा उनकी पत्नी की बेटे की इच्छा भी पूरी हो गई और प्रभु के दर्शनों की लालसा भी। बाद में उन्होंने अपने घर में गुरुद्वारा बनवा दिया जो अब भी मैणी संगत’ के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी इस गुरुद्वारा में संगतों को प्रसाद में छोले-पूरी ही मिलती है।