यहाँ कुछ समय रहकर तथा दोनों समय दीवान लगाकर और कीर्तन का प्रवाह चलाकर गुरु परिवार अयोध्या आ गया। जहाँ श्री राम चन्द्र जी का जन्म हुआ था। यह अवध देश की राजधानी थी जहाँ किसी युग में सूर्यवंशी राजाओं का राज्य था। बाला प्रीतम ने उसी वशिष्ठ कुंड के पास डेरा लगाया जहाँ कभी गुरुदेव पिता तेग बहादुर जी ठहरे थे। यहाँ एक विचित्र घटना घटित हुई जिसकी चर्चा पूरे शहर में हुई। इससे बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए आने लगे। साहिबजादा श्री गोबिंद जी जिस स्थान पर बैठे थे वहाँ बहुत से बन्दर इकट्ठा हो गये। पर वे मनुष्यों की तरह ही माथा टेकते और एक तरफ बैठ जाते। उनके बाद दो बन्दर और आये जो अपने साथ फल लेकर आये थे। उन्होंने वे फल बाला-प्रीतम के समक्ष रखे और माथा टेक कर एक तरफ बैठ गये। जितने दिन गुरु परिवार यहाँ रहा, बाला-प्रीतम के दर्शनों के लिए संगत आती रही और बन्दर भी आते रहे। इससे राम उपासकों में यह बात फैल गई कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि श्री राम चन्द्र जी स्वयं ही आ गये हैं।
गुरु परिवार अयोध्या से चलकर नानकमता, पीली भीत, देवनगर, लखनऊ, बनूर, मथुरा, आगरा, हरिद्वार से होता हुआ अम्बाला के समीप लखनौर पहुँच गया। यहाँ ही गुरु तेग बहादुर जी का संदेश पहुँच गया था कि कुछ समय लखनौर में ही ठहरना। इसलिए कई महीने गुरु परिवार लखनौर में ही रहा। यहाँ आस-पास तथा दूर से भी संगत दर्शन के लिए आने लगी। यहाँ सभी का यही विचार था कि बाला प्रीतम अपने दादा गुरु हरिगोबिंद साहिब की तरह बड़े शूरवीर और तेज वाले होंगे। बाला प्रीतम ने अब घुड़सवारी भी प्रारम्भ कर दी थी। पटना की तरह यहाँ भी बच्चों को इक्टठा करके रण कौशल के ढंग समझाते तथा शस्त्र-प्रदर्शन करते। पगड़ी पहन कर उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली प्रतीत होता।
यहाँ भी गाँव में पानी खारा था। माता गुजरी के आशीर्वाद से नया कुआँ खोदा गया जिसका पानी मीठा निकला। बाला प्रीतम की इच्छा से यहाँ एक बावड़ी भी तैयार करवाई गई। यह दोनों यादगारें अभी तक है। भीखण शाह यहाँ फिर से दर्शन के लिए आया। उसने माथा टेक कर बाला-प्रीतम को गोद में ले लिया। एक ओर ले जाकर वह काफी देर बातें करता रहा और अन्त में उसने इच्छा व्यक्त की कि वे उसे आशीर्वाद दें जिससे उसका डेरा आबाद रहे। बाला प्रीतम ने उसे आशीर्वाद दिया। यह वही भीखणशाह है जो पटना गया था। पीर मीरदीन ने भीखण शाह को कहा कि मुसलमान होकर हिन्दू बालक की वंदना करता है। भीखण शाह ने उत्तर देते हुए कहा-‘यह साधारण बालक नहीं है, परमात्मा का पुत्र है। इसी तरह पीर आरफ दीन ने भी परमात्मा की ज्योति पहचान कर बाला प्रीतम की वंदना की।