कुष्ठि का आरोग्य होना (Shri Guru Harkishan Sahib Ji)

कुष्ठि का आरोग्य होना (Shri Guru Harkishan Sahib Ji)

श्री गुरू हरिकिशन जी की स्तुति कस्तूरी की तरह चारों ओर फैल गई। दूर-दराज से संगत बाल गुरू के दर्शनों को उमड़ पड़ी। जनसाधारण को मनो – कल्पित मुरादें प्राप्त होने लगी। स्वाभाविक ही था कि आपके यश के गुण गायन गांव-गांव, नगर-नगर होने लगे। विशेष कर असाध्य रोगी आपके दरबार में बड़ी आशा लेकर दूर दूर से पहुँचते। आप किसी को भी निराश नहीं करते थे। आप का समस्त मानव कल्याण एक मात्र उद्देश्य था। एक दिन कुछ ब्राह्मणों द्वारा सिखाये गये कुष्ठ रोगी ने आपकी पालकी के आगे लेट कर ऊँचे स्वर में आपके चरणों में प्रार्थना की कि हे गुरूदेव ! मुझे कुष्ठ रोग से मुक्त करें। उसके करूणामय रूदन से गुरूदेव जी का हृदय दया से भर गया, उन्होंने उसे उसी समय अपने हाथ का रूमाल दिया और वचन किया कि इस रूमाल को जहाँ जहाँ कुष्ठ रोग है, फेरो, रोगमुक्त हो जाओगे। ऐसा ही हुआ। बस फिर क्या था ? आपके दरबार के बाहर दीर्घ रोगियों का तांता ही लगा रहता था। जब आप दरबार की समाप्ति के बाद बाहर खुले आंगन में आते तो आपकी दृष्टि जिस पर भी पड़ती, वह निरोग हो जाता। यूं ही दिन व्यतीत होने लगे।

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