श्री गुरू हरकिशन जी दिल्ली पधारे (Shri Guru Harkishan Sahib Ji)
श्री गुरू हरिकिशन जी की सवारी जब दिल्ली पहुँची तो राजा जय सिंह ने स्वयं उनकी आगवानी की और उन्हें अपने बंगले में ठहराया। जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। राजा जय सिंह के महल के आसपास के क्षेत्र का नाम जयसिंह पुरा था। जयसिंह की रानी के हृदय में गुरूदेव जी के दर्शनों की तीव्र अभिलाषा थी, किन्तु रानी के हृदय में एक संशय ने जन्म लिया। उसके मन में एक विचार आया कि यदि बालगुरू पूर्ण गुरू हैं तो मेरी गोदी में बैठे। उसने अपनी इस परीक्षा को किर्यान्वित करने के लिए बहुत सारी सखियों को भी आमंत्रित कर लिया था। जब महल में गुरूदेव का आगम हुआ तो वहाँ बहुत बड़ी संख्या में महिलाएं सजधाज कर बैठी हुई गुरुदेव जी की प्रतीक्षा कर रही थीं। गुरूदेव सभी स्त्रियों को अपनी छड़ से स्पर्श करते हुए कहते गये कि यह भी रानी नहीं, यह भी रानी नहीं, अन्त में उन्होंने रानी को खोज लिया और उसकी गोद में जा बैठे। तदपश्चात उसे कहा – आपने हमारी परीक्षा ली है, जो कि उचित बात नहीं थी।
औरंगजेब को जब सूचना मिली कि आठवें गुरू श्री हरिकिशन जी दिल्ली राजा जय सिंह के बंगले पर पधारे हैं तो उसने उनसे मुलाकात करने का समय निश्चित करने को कहा – किन्तु श्री हरिकिशन जी ने स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा – हमने दिल्ली आने से पूर्व यह शर्त रखी थी कि हम औरंगजेब से भेंट नहीं करेंगे। अत: वह हमें मिलने का कष्ट न करें। बादशाह को इस उत्तर की आशा नहीं थी। इस कोरे उत्तर को सुनकर वह बहुत निराश हुआ और दबाव डालने लगा कि किसी न किसी रूप में गुरूदेव को मनाओं, जिससे एक भेट सम्भव हो सके।