एक ब्राह्मण की शंका का समाधान (Shri Guru Harkishan Sahib Ji)
कीरतपुर से दिल्ली पौने दौ सौ मील दूर स्थित है। गुरुदेव के साथ भारी संख्या में संगत भी चल पड़ी। इस बात को ध्यान में रखकर आप जी ने अम्बाला शहर के निकट पंजोखरा नामक स्थान पर शिविर लगा दिया और संगत को आदेश दिया कि आप सब लौट जायें। पंजोखरा गाँव के एक पंडित जी ने शिविर की भव्यता देखी तो उन्होंने साथ आये विशिष्ट सिक्खों से पूछा कि यहाँ कौन आये हैं ? उत्तर में सिक्ख ने बताया कि श्री गुरू हरिकिशन महाराज जी दिल्ली प्रस्थान कर रहे हैं, उन्हीं का शिविर है। इस पर पंडित जी चिढ़ गये और बोले कि द्वापर में श्री कृष्ण जी अवतार हुए हैं, उन्होंने गीता रची है। यदि यह बालक अपने आपको हरिकिशन कहलवाता है तो भगवत गीता के किसी एक श्लोक का अर्थ करके बता दे तो हम मान जायेंगे। यह व्यंग जल्दी ही गुरूदेव तक पहुंच गया। उन्होंने पंडित जी को आमंत्रित किया और उससे कहा – पंडित जी आपकी शंका निराधार है। यदि हमने आपकी इच्छा अनुसार गीता के अर्थ कर भी दिये तो भी आपके भ्रम का निवारण नहीं होगा क्योंकि आप यह सोचते रहेंगे कि बड़े घर के बच्चे हैं, सँस्कृत का अध्ययन कर लिया होगा इत्यादि। किन्तु हम तुम्हें गुरू नानक के घर की महिमा बताना चाहते हैं। अतः आप कोई भी व्यक्ति ले आओ जो तुम्हें अयोग्य दिखाई देता हो, हम तुम्हें गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी होने के नाते उस से तुम्हारी इच्छा अनुसार गीता के अर्थ करवा कर दिखा देंगे। चुनौती स्वीकार करने पर समस्त क्षेत्र में जिज्ञासा उत्पन्न हो गई कि गुरूदेवे पंडित को किस प्रकार संतुष्ट करते हैं। तभी पंडित कृष्णलाल एक झींवर (पानी ढोने वाला) को साथ ले आया जो बैरा और मूंगा था। वह गुरूदेव जी से कहने लगा कि आप इस व्यक्ति से गीता के श्लोकों के अर्थ करवा कर दिखा दे। गुरूदेव ने झींवर छज्जूराम पर कृपा दृष्टि डाली और उसके सिर पर अपने हाथ की छड़ी मार दी। बस फिर क्या था ? छज्जूराम झींवर बोल पड़ा और पंडित जी को सम्बोधान करके कहने लगा – पंडित कृष्ण लाल जी, आप गीता के श्लोक उच्चारण करें। पंडित कृष्ण लाल जी आश्चर्य में चारों ओर झांकने लगा। उन्हें विवशता के कारण भगवत गीता के श्लोक उच्चारण करने पड़े। जैसे ही झींवर छज्जू राम ने पंडित जी के मुख से श्लोक सुना, वह कहने लगा कि पंडित जी आपके उच्चारण अशुद्व हैं, मैं आपको इसी श्लोक का शुद्ध उच्चारण सुनाता हूँ और फिर अर्थ भी पूर्ण रूप में स्पष्ट करूंगा। छज्जूराम ने ऐसा कर दिखाया। पंडित कृष्ण लाल का संशय निवृत्त हो गया। वह गुरू चरणों में बार बार नमन करने लगा।
तब गुरूदेव जी ने उसे कहा – आपको हमारी शारीरिक आयु दिखाई दी है, जिस कारण आपको भ्रम हो गया है, वास्तव में ब्रह्मज्ञान का शारीरिक आयु से कोई सम्बन्ध नहीं होता। यह अवस्था पूर्व संस्कारों के कारण किसी को भी किसी आयु में प्राप्त हो सकती है। आपने सँस्कृत भाषा के श्लोकों के अर्थों को कर लेने मात्र से पूर्ण पुरूष होने की कसौटी मान लिया है, जबकि यह विचारधारा ही गलत है। महापुरुष होना अथवा शाश्वत ज्ञान प्राप्त होना, भाषा ज्ञान की प्राप्ति से ऊपर की बात है। आध्यात्मिक दुनिया में ऊँची आत्मिक अवस्था उसे प्राप्त होती है, जिसने निष्काम, समस्त प्राणीमात्र के कल्याण के कार्य किये हों अथवा जो प्रत्येक श्वास को सफल करता है। प्रभु चिन्तन मन में व्यस्त रहता है।
इस मार्मिक प्रसंग की स्मृति में आज भी पंजोखरा गाँव में श्री हरिकिशन जी के कीर्ति स्तम्भ के रूप में एक भव्य गुरूद्वारा बना हुआ है।