श्री गुरु हर राय जी की जीवनी - Guru Har Rai Sahib Ji

श्री गुरु हर राय जी की जीवनी

श्री गुरू हरिगोविन्द साहब जी को कीरतपुर से संदेश मिला कि आपके यहाँ पौत्रा ने जन्म लिया है। वह करतारपुर से कीरतपुर पहुंचे। आपने जब माता राजकौर की गोदी से पौत्रा को अपनी गोदी में लिया तो बालक के लक्ष्ण देखकर आप ने कहा – यह बालक हमारे ताऊ पृथीचन्द जैसे लक्षणों का स्वामी होगा। इस को माया के अतिरिक्त कुछ नहीं सुझेगा। आपने बालक का नाम दिया धीरमल, आप का विचार था कि शायद नाम का प्रभाव उसकी चॅचल प्रवृत्ति पर कुछ अंकुश रख सकेगा।

समय के अन्तराल में जब चार वर्षों बाद आपको सूचना मिली कि आप के यहाँ दूसरे पौत्रा ने जन्म लिया है तो आप पुनः कीरतपुर पधारे। इस बार आपने जब नवजात शिशु को गोदी में लिया तो आप बालक के दर्शनों के पश्चात् बहुत प्रसन्न हुए। आपने कहा – यह बालक क्या है स्वयं हरि मानव रूप धारण कर पृथ्वी पर आ विराजे है आपने बालक को प्रणाम किया और बालक को नाम दिया हरिराय। आपने बेटे गरूदिता जी को आदेश दिया कि बालक के पालन पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाये।

करतारपुर में शाही सेना से अन्तिम युद्ध के पश्चात् आप कीरतपुर ही निवास करने लगे। इस बीच अकस्मात् जब श्री गुरूदिता जी का निष्ट  नि हो गया तो आप ने हरािय जी को अपनी देखरेखमें लिया। उस समय उनकी आयु केवल ४ वर्ष की थी।

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