बबा बुड्ढा जी के हाथों पाँच गुरूजनों को गुरू परम्परा के अंतर्गत विधिवत तिलक दिया गया। जब वह दीर्घ आयु के कारण परिश्रम करने | में अपने को असमर्थ अनुभव कर रहे थे तो उन्होंने गुरूदेव से आज्ञा मांगी कि अपने पैतृक ग्राम रमदास, अपने परिवार में जाने की इच्छा प्रकट की। गुरूदेव ने उन्हें सहर्ष विदाकिया। जाते समय बाबा जी ने गुरू चरणों में निवेदन किया कि कृपया आप मेरे अन्तिम समय में अवश्य ही दर्शन देकर मुझे कृतार्थ करें गुरूदेव जी ने उन्हें वचन दिया कि ऐसा ही होगा।
आप जी का जन्म पिता सुंथे रंधावे के गृह माता शोरा के उदर से सन १५०६ के अक्तुबर को कथू नंगल ग्राम जिला अमृतसर में हुआ था। इन दिनों आपने अपना अन्तिम समय निकट जानकर श्री हरिगोविन्द जी के संदेश भेजा कि वह उन्हें दर्शन दे कर कृतार्थ करें संदेश प्राप्त होते ही गुरूदेव ग्राम रमदास पहुंचे और उन्होंने बाबा बुड्ढा जी से कहा – आपने पाँच गुरूजनों की निकटता प्राप्त की है, अतः हमें कोई उपदेश दें। इस पर बाबा जी के नेत्रा द्रवित हो गये और वह कहने लगे कि आप सूर्य हैं और मैं जुगनू अर्थात मैं तो आपका एक अदना सा सेवक मात्रा हूँ। आप को उस प्रभु ने समस्त विश्व की बरकतों से निवाजा है। आपने अपने लड़के भाना जी का हाथ गुरूदेव जी के हाथ में थमा दिया और निवेदन किया कि इसे आप सदैव अपना सेवक जानकर कृतार्थ करते रहें। अगले दिन प्रातःकाल बाबा जी ने शरीर त्याग दिया। गुरूदेव जी ने उनकी शव यात्रा में भाग लिया और अपने हाथों उनकी अंत्येष्टि क्रिया सम्पन्न की। तर्पश्चात् उनके सुपुत्रा श्री भाना जी को पगड़ी भेंट की। निधन के समय बाबा जी की आयु १२५ वर्ष थी।