श्री गुरूदास जी श्री गुरू अर्जुन देव जी के रिश्ते में मामा लगते थे। जब श्री गुरू अमर दास जी ने गोईंदवाल बसाया था तो आपको श्री गुरू अंगद देव जी ने हुक्म किया कि समस्त परिवार को भी बासरके ग्राम से यहीं ले आओ। उसी आदेश अनुसार गुरू अमर दास जी ने अपना संयुक्त परिवार गोईंदवाल बसाया था। श्री गुरूदास जी आपके भ्राता के लड़के थे, जो बहुत ही प्रतिभाशाली थे, इसलिए आप जी ने उनकी विशेष शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध अपनी देखरेख में करवाया। इस प्रकार गुरूदास जी साहित्यिक जगत में बहुत ऊँची श्रेणी के विद्वानों में गिने जाने लगे। इस बहुमुखी प्रतिभा के कारण आपको श्री गुरू राम दास जी ने आगरा क्षेत्रा में प्रचारक नियुक्त किया था और कालान्तर में श्री गुरू अर्जुन देव जी ने आप को आदि ग्रंथ की सम्पादना करते समय लिखारी के रूप में नियुक्त किया था। इस प्रकार श्री गुरू हरिगोविन्द जी ने आप को श्री अकाल तख्त की स्थापना के पश्चात् प्रथम जत्थेदार के रूप में नियुक्त किया। आपने बहुत से काव्य रचनाएं भी की, जिन्हें सिख जगत में कवित कहा जाता है। आपकी इन रचनाओं को श्री गुरू अर्जुन देव जी ने वरदान दिया और कहा – यह रचनाएं आदि ग्रंथ साहब की कुंजी होगी। वर्तमान काल में यह रचनाएं गुरूवाणी तुल्य मानी जाती है।
जब आपने अनुभव किया कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तो आपने गुरूदेव से आज्ञा मांग कर गोईंदवाल निवास कर लिया। फिर आपने अनुभव किया कि मेरे श्वासों की पूंजी समाप्त होने वाली है तो आपने गुरूदेव जी को संदेश भेजा कि मुझे अन्तिम समय अवश्य ही दर्शन दें। गुरूदेव समस्त कार्य छोड़ कर उनका संदेश मिलते ही गोईंदवाल पहुंचे। अन्तिम समय में गुरूदेव जी के दर्शन कर भाई श्री गुरदास जी गद्गद् हो गये और उन्होंने कहा – मेरा कोई स्मारक नहीं बनाना। इस प्रकार उन्होंने शरीर त्याग दिया। गुरूदेव जी उनकी शव यात्रा में सम्मिलित हुए और उन्होंने अंत्येष्टि क्रिया सम्पन्न कर दी। आपकी आयु उस समय ७५ वर्ष थी।