भाई तिलकाजी केनिकट हीएक वृद्ध योगी का आश्रम था। आपके गुरूमति प्रचार के कारण योगी की मान्यता लोगों में घटती जा रही थी। इस कारण योगी मन ही मन ईर्ष्या की आग में जलता ही रहता था। योगी भान्ति भान्ति के पाखण्ड करके लोगोंपर प्रभाव डालने की चेष्टा करता रहता था, परन्तु सिख (गुरूमति) सिद्धान्तों के समक्ष उसका ढोंग चल नहीं पा रहा था।
एक दिन योगी ने एक नया पाखण्ड रचा। उसने अपने शिष्यों के माध्यम से यह सूचना फैला दी कि शिव रात्रि की रात में योगी को शिव भगवान के दर्शन हुए हैं और भोलेनाथ ने उसे वरदान दिया है कि जो व्यक्ति उसके दर्शन करेगा उसे एक वर्ष के लिए स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी।
इस प्रकार यह समाचार समस्त क्षेत्रा में फैल गया। बेचारे भोले भाले व अज्ञानी लोग योगी के चंगुल में फंसने लगे। भारी संख्या में लोग योगी के दर्शन करने लगे। किन्तु विवेकी पुरूषों पर जो कि गुरूवाणी समझते थे, कोई प्रभाव न हुआ। इस बात से योगी छटपटा उठा, वह तो चाहता था कि किसी न किसी कारण भाई तिलका जी उसके आश्रम में पहुंचे किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस पर योगी ने अपने सहायकों की सहायता से भाई तिलका जी को संदेश भेजा कि वह योगी के दर्शन करे और आपके लिए विशेष व्यवस्था है आप को पूरे पाँच वर्ष के लिए स्वर्ग की प्राप्ति होगी। भाई साहब तो पूर्ण गुरूसिक्ख थे। उन्होंने योगी की एक न सुनी और कहा योगी ढोंगी है। अतः मैं उस के पाखण्ड जाल में फंस ही नहीं सकता।
जब योगी की सब युक्तियां विफल हो गई तो अन्त में वह पराजित होकर स्वयं भाई तिल का जी के द्वार पर उनको दर्शन देने आया। जब भाई तिलका जी को योगी के आने की सूचना मिली तो उन्होंनेअपने घर के दरवाजे बन्द कर लिए। योगी ने आकर दरवाजा खटखटाया व ऊँची आवाज में कहने लगा, मैंआपके लिए स्वयं चल कर आया हूं। आप मेरे दर्शन करो और स्वर्ग लोक प्राप्त करो।
इस पर भाई तिलका ने उत्तर दिया कि मैं दरवाजा नहीं खोलूंगा। क्योंकि मैं तेरे जैसे पाखण्डी की सूरत भी देखने के लिए तैयार नहीं । तुम लोगों में भ्रमजाल फैला कर लूट रहे हो। मैं गुरू का सिख हूं। अतः मुझे स्वर्ग की कोई आवश्यकता ही नहीं। हम गुरू चरणों से ऐसे कई स्वर्ग न्यौछावर कर सकते हैं।
यह उत्तर सुनकर योगी को भारीआघात हुआ। उसका सर्वत्रा कांप उठा। वह सोचने लगा कि ये कैसे सिख हैं जो अपने गुरू की शिक्षाओं को स्वर्ग से भी उत्तम मानते हैं। यदि यह सिक्ख इतना महान है तो इसका गुरू कितना महान होगा। वह सोचता रहा कि उस गुरू का उपदेश व वाणी कितनी आत्मज्ञान पूर्ण होगी, जिसे पढ़कर यह इतने सुदृढ़ हो गये हैं और मेरे जैसे पाखण्डियों का भंडा फोड़कर देते हैं। इसलिए शायद यह धोखा नहीं खा सकते। योगी ने भाई तिलका जी को गुरू की दुहाई दी और कहा – कृपया दरवाजा खोलो और मुझे आप दर्शन दें और मुझे भी उस गुरू के दर्शन करवाओ जिसके तुम शिष्य हो। इस पर भाई जी ने दरवाजा खोल दिया। भाई तिलका जी ने योगी से कहा – सत्य मार्ग केपंथी पाखण्ड नहीं करते वह तो एक निराकार प्रभु के चिन्तन मनन को ही साधन बनाकर प्रेम भक्ति द्वारा इस भवसागर से पार चले जाते हैं। योगी के अनुरोध पर भाईतिलकाजी ने स्थानीय संगत को साथ लेकर गुरू दर्शनों के लिए अमृतसर प्रस्थान कर गये। वहां योगी ने पाया कि श्री गुरू हरिगोविन्द जी तो एक युवक हैं, उसने शंका व्यक्त की कि इतनी अल्पायु में इन्हें ब्रहमज्ञान कैसे प्राप्त हो गया? उत्तर में उसे गुरूदेव ने बताया कि ज्ञान का सम्बन्ध । आयु से नहीं होता, ज्ञान का सम्बन्ध तो उपदेश कमाने में है।