
09August
बुढण शाह (Shri Guru Hargobind Ji)
श्री हरिगाविन्द साहब जी ने अपने बड़े बेटे (बाबा) गुरूदित जी को आदेश दिया कि आप हिमालय पर्वत की तराई के क्षेत्रा में एक नगर बसाओ और वहीं आगामी जीवन में निवास स्थल बनाओ। गुरूदिता जी ने पिता श्री गुरू हरिगोविन्द जी से आग्रह किया कि कृपया आप उस विशेष स्थान का चुनाव कर के दें इस प्रकार पिता पुत्रा पर्वतीय क्षेत्रा की तलहटी में विचरण करने लगे। इस बीच गुरूदेव जी ने बेटे गुरूदिता जी को बताया कि हम पहले जामे (शरीर) में जब गुरू नानक देव रूप हो यहाँ प्रचार के लिए विचरण कर रहे थे तो उन दिनों यहाँ एक गड़रिया बुडण शाह निवास करता था, जिसे इबादत करने की तीव्र इच्छा थी, इस लिए वह दीर्घ आयु की अभिलाषा रखता था, जब हम से उसने यह मनोकामना पूर्ण करने की मंशा प्रकट की तो हमनेउसे कहा – ऐसा ही होगा और हम आप द्वारा भेंट किया गया दूध का कटोरा छेवे जामे (शरीर) में स्वीकार करेंगे, जब आप के श्वासों की पूंजी समाप्त होने वाली होगी। अतः अब वही समय आ गया है, हमें बुडण शाह फकीर से भेंट कर उसका कटोरा दूध का स्वीकार करना है। गुरूदेव ने एक पर्वतीय ग्राम में बुडण शाह को खोज लिया। बुडण शाह ने आपका हार्दिक स्वागत किया, वह कहने लगा कि यह तो ठीक है, आप गुरू नानक के उत्तराधिकारी हैं, वही सब तेजस्व है किन्तु कृपया आप मुझे शाही ठाठ-बाट से हट कर उसी रूप में दर्शन दें। तब गुरूदेव जी ने बाबा गुरूदिता जी को आदेश दिया कि वह तुरन्त गुरू नानक देव जी का ध्यान करके स्नान करके लौट आवें, गुरूदिता ने ऐसा ही किया। जब लौट कर बुडण शाह के सम्मुख हुए तो बुडण शाह को वह गुरू नानक रूप दृष्टिगोचर होने लगे। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और दूध का कटोरा भेंट करते हुए बोला, कृपया आप मेरा आवागमन का चक्कर समाप्त कर दे गुरू नानक रूप में बाबा गुरूदिता जी ने कहा – आपकी इच्छा पूर्ण हुई। इस पर योग बल से बुडण शाह ने शरीर त्याग दिया। गुरूदेव ने उसका अन्तिम सँस्कार करके उसकी वहीं कब्र बना दी।