श्री गुरु हरगोबिन्द जी - Shri Guru Hargobind Sahib Ji

नानक मते के लिए प्रस्थान (Shri Guru Hargobind Ji)

श्री गुरू हरिगोविन्द साहब जी के सांडू सांई दास जी डरोली ग्राम में निवास करते थे। उन्होंने एक नई इमारत (हवेली) बनवाई। यह अति सुन्दर तथा सुख सुविधाओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी। अतः सांई दास के हृदय में एक इच्छा ने जन्म लिया कि क्या अच्छा हो यदि इसके उद्घाटन के समय सर्वप्रथम इस में गरूदेव श्री हरिगोविन्द जी अपने पवित्रा चरण कमल डाले।

उन्हीं दिनों गुरूदेव जी को जिला पीलीभीत उत्तरप्रदेश के नानक मते के क्षेत्रा से भाई अलमसत जी द्वारा एक संदेश प्राप्त हुआ कि स्थानीय श्री गुरू नानक देव के स्मारक को सिद्ध योगी ईष्यवश नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने वह पीपल का वृक्ष तथा वह चौपाल भी नष्ट कर दी है। अतः आप सहायता के लिए पहुंचे क्योंकिउनकी संख्या अधिक है तथा वह निम्न आचरण पर आ गये हैं।

गुरूदेव जी ने समय की पुकार को ध्यान में रखते हुए एक यात्रा का कार्यक्रम बनाया। पहले आप सपरिवार डरोली ग्राम पहुंचे और अपने सांडू भाई सांई दास को उनकी हवेली में प्रवेश कर के कृतार्थ किया। परिवार को कुछ दिनों के लिए यहीं छोड़कर आप आगे जिला पीलीभीत के लिए प्रस्थान कर गये।

जब आप नानक मते पहुंचे तो उदासी सम्प्रदाय के बाबा अलमसत आप की आगवानी करने के लिए पहुंचे और उन्होंने बताया कि किस प्रकार योगियों ने गुरू नानक देव जी के स्मारक को क्षतिग्रत किया है। जब योगियों ने गुरूदेव का सैन्यबल देखा तो वे भाग खड़े हुए और स्थानीय नरेश की सहायता प्राप्त कर युद्ध करने की योजना बनाने लगे किन्तु स्थानीय नरेश बाज बहादुर ने सूझबूझ से काम लिया। उसने दूत भेजकर गुरूदेव से वार्तालाप से समस्या का समाधान निकालते हुए एक संधि पर हस्ताक्षर करवा जिससे सदैव के लिए दोनों पक्षों का विरोध समाप्त हो गया। गुरूदेव ने क्षतिग्रत स्मारक का पुनः निर्माण करवाया और सभी संगत ने प्रभु चरणों में मिलकर प्रार्थना की, जिससे पीपल की नई कलियां निकल आईं। इस प्रकार जला हुआ पीपल का वृक्ष पुनः हरा हो गया।

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