दूसरी तरफ श्री गुरू हरिगोविन्द जी भी इस अगाध प्रेम की तड़प से रह ना सके। वह श्री दरबार साहब का कार्यभार बाबा बुड्ढ़ा जी को सौंप कर कश्मीर के लिए प्रस्थान कर गये। आप जी पहले लाहौर नगर गये। वहां से स्यालकोट पहुंचे। आपने जहां पड़ाव किया, वहां पानी नहीं था। आपने एक स्थानीय ब्राह्मण से पानी के ओत के विषय में पूछा तो उसने आपसे अनुरोध किया कि आप गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी हैं। कृपया इस क्षेत्रा को पानी का दान हीं दीजिए। गुरूदेव उसके अनुरोध को अस्वीकार न कर सके। उन्होंने ब्राह्मण से कहा – तुम राम का नाम लेकर वह सामने वाला पत्थर उठाओ। ब्राह्मण ने आज्ञा मान कर ऐसा ही किया। पत्थर के नीचे से एक पेय जल का झरना उभर आया। स्थानीय निवाोिं ने इस जल श्रोत का नाम गुरूसर रखा।
आप पर्वतीय क्षेत्रों को पार कर कश्मीर घाटी के समतल मैदानों में पहुँचे तो वहां आप का स्वागत भाई कटू शाह ने किया। यह मानुभव यहां पर सिक्खी प्रचार में बहुत लम्बे समय से संलग्न थे। भाई कट्टू जी ने समस्त जत्थे की भोजन व्यवस्था इत्यादि की। वहां से गुरूदेव ने अगला पड़ाव श्रीनगर में किया। वहीं निकट ही सेवादास जी का घर था। गुरूदेव जी घोड़े पर सवार होकर श्रीनगर की गलियों में से होते हुए माता भागभरी के मकान के सामने पहुंच गये। घोड़े की टापों की आवाज सुनकर सेवादास घर से बाहर आया तो पाया कि हम जिन को सदैव याद करते रहते हैं, वह सामने खड़े हैं। बस फिर क्या था, वह सुध-बुध भूल गया और गुरू चरणों में नतमस्तक हो कर बार बार प्रणाम करने लगा तभी माता भागभरी जी को भी सूचना मिली कि गुरूदेव जी आये हैं तो वह भी गुरू चरणों में उपस्थित हुई और कहने लगी कि मेरे धन्यभाग जो आप पँजाब से यहाँ इस नाचीज के लिए पधारे हैं उसने गुरूदेव जी को घर के आंगन में पंलग बिछा दिया और वह सुन्दर पोशाक जो उसने अपने हाथ से सूत कात कर बनाई थी, गुरूदेव जी को अर्पित की। गुरूदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने माता जी को दिव्य दृष्टि प्रदान की। माता जी को अगम्य ज्ञान हो गया। उन्होंने गुरूदेव से अनुरोध किया कि अब मेरे श्वासों की पूंजी समाप्त होने वाली है, कृपया आप कुछ दिन यहीं रहे, जब मैं परलोक गमन करूं तो आप मेरी अंत्येष्टि क्रिया में भाग लें। गुरूदेव जी ने उसे आश्वासन दिया, माता जी ऐसा ही होगा। एक उचित दिन देखकर माता जी ने शरीर त्याग दिया। इस प्रकार गुरूदेव जी ने माता जी के अन्तिम संस्कारों में भाग लेकर उनको कृतार्थ किया।