श्री गुरु हरगोबिन्द जी - Shri Guru Hargobind Sahib Ji

समर्थ रामदास से भेंट (Shri Guru Hargobind Ji)

पीलीभीत से लौटते हुए श्री गुरू हरिगोविन्द जी हरिद्वार ठहरे। आपके साथ हर समय अपना सैन्यबल रहता था। आपका वैभव देखकर महाराष्ट्र से आए हुए शिवाजी मराठा के गुरू समरथ राम दास ने संशय व्यक्त किया और कहा कि मुझे बताया गया है कि आप श्री गुरू नानक देव जी के उत्तराष्टि कारी हैं किन्तु नानक देव जी तो त्यागी पुरूष थे ? जबकि आप शाही ठाठबाट में शस्त्राधारी हैं ? आप कैसे साधु हुए ?

इस पर गुरूदेव ने उत्तर दिया कि श्री गुरू नानक देव जी ने केवल माया त्यागी थी, सँसार नहीं –

हमारा सिद्धान्त है :

बातन फकीरी जाहिर अमीरी शस्त्रा गरीब की रक्षा । जालम की भृक्षा।

समरथ रामदास इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए और कहा – यह बात हमारे मन भावति है। यहां से यह गुरूमति सिद्धान्त उन्होंने पल्ले बाँध लिया और समय मिलते ही अपने परम शिष्य शिया को शस्त्रा उठाक र धर्म युद्ध करने की प्रेरणा दी।

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