श्री गुरू हरिगोविन्दजी पंजाब के मांझे क्षेत्रा में प्रचार दौरे पर चल पड़े। आप जी करतारपुर में ठहरे। यह नगर श्री गुरू अर्जुनदेव जी द्वारा बसाया गया था। जब स्थानीय संगत को ज्ञात हुआ कि गुरू अर्जुन देव जी के सुपुत्रा श्री गुरू हरिगोविन्द जी पधारे हैं तो वहाँ अपारजन समूह एकत्रित हुआ। आप की उपमा सुनकर इस क्षेत्रा के पठान कबीले के लोग इस्माइल खान नामक चौधरी के नेतृत्व में आप की शरण में आये और उन्होंने विनती की कि उन्हें आप अपनी सेना में भर्तीकर ले। इन युवकों में एक गिलजी जाति से सम्बन्धित पठान बहुत ही सुन्दर, हष्ट-पुष्ठ शरीर का था, जिसका नाम पैंदे खान था। गुरूदेव इस पठान को यौद्धा रूप में देख रीझ उठे। आपने इन लोगों में से छब्बीस जवानों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया और पैंदे ख़ान को गुरूदेव ने विशेष प्रशिक्षण देने के विचार से कुछ अधिक सुख-सुविधाएं प्रदान कर दी और उसे बहुत पौष्टिक आहार दिया जाने लगा। जल्दी ही पैदे खान पहलवान के रूप में उभर कर प्रकट हुआ। वह शारीरिक शक्ति के कई करतब दिखा कर जन-साधारण को आश्चर्य में डाल देता था।
उसने अपनी वीरता का प्रदर्शन तब किया जब लाहौर के राज्यपाल की सेना के सेनापति मुस्लिस खान को क्षण भर में मृत्यु शैया पर सुला | दिया। गुरूदेव के साथ अन्तिम युद्ध के प्रतिद्वन्द्वी पक्ष के रूप में पैदे खान स्वयं ही था। इन घटनाओं का विस्तृत वर्णन आगे के वृत्तन्त में किया जाएगा।