वास्तव में जहांगीर हिन्दु संस्कारों में पला हुआ व्यक्ति था, उसकी किशोर अवस्था राजस्थान के राजपूत घरानों (ननिहाल में व्यतीत हुआ था। अतः वह पंडितों ज्योतिषों के चक्कर में पड़ा रहा था। राजकीय ज्योतिषि ने चन्दूशाह का काम कर दिया। सम्राट उस के भ्रमजाल में फंस गया। इस प्रकार सम्राट बेचेन रहने लगा कि उस का कुछ अनिष्ट होने वाला है। दरबार में मंत्रियों ने इस का कारण पूछा तो सम्राट ने बताया कि कोई ऐसा व्यक्ति ढूंढों जो मेरे लिए जप तप किसी सुरक्षित स्थान में करे। यह सुनते ही चन्दू शाह ने विचार रखा। इन दिनों आपके साथ ही तो हैं गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी, उनसे महान और कौन हो सकता है, वही इस कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं। बादशाह ने गुरूदेव को तुरन्त बुला भेजा, गुरूदेव ने बादशाह को बहुत समझाने का प्रयास किया कि ग्रह नक्षत्रों का भ्रमजाल मन से निकाल बाहर करो। आपके जीवन में किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आने वाली है किन्तु वह हठ करने लगा कि नहीं, कृपया आप मेरे लिए ४० दिन अखण्ड घोर तपस्या करें। गुरूदेव जी ने यह कार्य भी करना स्वीकार कर लिया। इस पर चन्द्र द्वारा सिखाये गये मंत्रियों द्वारा सुरक्षित स्थल के रूप में ग्वालियर के किले को सुझाया गया।
इस प्रकार गुरूदेव ४० दिन की अखण्ड घोर तपस्या के लिए ग्वालियर के किले के लिए प्रस्थान कर गये। ग्वालियर किले का स्वामी जिस का नाम हरिदास था, चन्दूशाह का गहरा मित्रा था, उस पर चन्दू को पूर्ण भरोसा था, इसलिए चन्टूशाह ने उसे पत्रा लिखा कि तेरे पास हरिगोविन्द तपस्या करने आ रहे हैं, इन्हें विष दे देना। यह वापस जीवित लौटने नहीं चाहिएं। उस कार्य के लिए उसे मुंह मांगी धन राशि दी जाएगी।