श्री गुरु हरगोबिन्द जी - Shri Guru Hargobind Sahib Ji

शाह उद दौला, पीर से भेंट (Shri Guru Hargobind Ji)

श्री गुरू हरिगोविन्द साहब जी कश्मीर से लौटते समय पश्चिमी पँजाब के जिला गुजरात में ठहर गये। जब आप वहां पर पड़ाव डालकर विश्राम कर रहे थे तो स्थानीय संगत आपके दर्शनों को उमड़ पड़ी। नगर में चारों ओर चहलपहल दिखाई देने लगी। तभी वहां के स्थानीय पीर शाह-उद-दौला जी ने अपने शिष्यों से पूछा कि नगर में कौन आया हुआ है जो बहुत धूमधाम है ? उत्तर में उन्हें बताया गया कि गुरू नानक देव के छटे उत्तराधिकारी श्री गुरू हरिगोविन्द जी आये हुए हैं। इस पर उनकी जिज्ञासा बढ़ गई। उन्होंने फिर पूछा कि एक दरवेश के आने से इतनी हलचल कैसे हो गई तो उन्हें बताया गया कि यह साधारण फकीर नहीं, यह तो राजसी वेश-भूषा में विचरण करते हैं और इनके साथ सभी प्रकार के विलासता के साधन उपलब्ः | हैं। यहाँ तक कि यह अपनी पत्नी तथा बच्चों को भी साथ लिए घूमते हैं।

यह सब जानकारी प्राप्त कर पीर शाह-उद-दौला के मन में बहुत से संश्यों ने जन्म लिया, वह रह नहीं सके। उन्होंने गुरूदेव से भेंट करने | का निश्चय किया। जब पीर जी का गुरूदेव से सामना हुआ तो पीर जी कहने लगे –

हिन्दू क्या और पीर क्या ?

औरतें क्या और फकीर क्या ? दौलत क्या और दरवेश क्या ? पुत्रा क्या और योगेश क्या ?

इन प्रश्नों का उत्तर गुखदेव ने भी उसी अंदाज में दिया –

औरत ईमान है। दौलत गुजरान है।

पुत्रा निशान है। करनी प्रधान है। फकीर न हिन्दू न मुसलमान है।

उत्तर बहुत सुलझा हुआ था, अतः पीर जी संतुष्ट होकर नमस्कार करते हुए वापिस लौट गये।

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