श्री गुरु हरगोबिन्द जी - Shri Guru Hargobind Sahib Ji

शेर का शिकार (Shri Guru Hargobind Ji)

श्री गुरू हरिगोविन्द जी अपने स्वभाव अनुसार निकट के वनों में अपने जवानों के साथ शिकार खेलने चले जाते। जब यह बात सम्राट को मालूम हुई कि गुरू जी एक अच्छे शिकारी भी हैं तो उसके मन में विचार आया कि क्यों न मैं भी शिकार खेलने चलू और गुरू जी के शिकार खेलने की योग्यता अपनी आंखों से देखें। अतः उसने शिकार खेलने का कार्यक्रम बनाया और गुरूदेव को इस खेल में निमन्त्रण भेजा। गुरूदेव इस संयुक्त अभियान के लिए तैयार हो गये।

इस संयुक्त अभियान में बहुत से प्रसिद्ध शिकारियों को सम्राट ने साथ में लिया। घने जंगलों में गुरूदेव जी ने बहुत से हिंसक पशु मार गिराये । तभी सूचना मिली कि निकट के जंगल में एक विशालकाय शेर का निवास स्थल है, तब क्या था, गुरूदेव ने उस दिशा में अपना घोड़ा मोड़ लिया। सम्राट उस समय हाथी पर सवार था। उसने भी हाथी के महावत को उसी ओर चलने को कहा कि अकस्मात् निकट ही से शेर अपनी मांद में से भयभीत गर्जन करते हुए बाहर आ गया। मुख्य शिकारी इधर उधर छिपने लगे, सभी भय के मारे कांपने लगे। तभी गुरूदेव घोड़े से नीचे अपने शस्त्रा लेकर उतर आये। सम्राट ने हाथी और शेर के बीच कुछ गजों का अन्तर ही रह गया था कि तभी गुरू जी मध्य में खड़े हो गये और शेर को ललकारने लगे। भारी गर्जन से शेर उछला और गुरूदेव पर झपटा किन्तु गुरूदेव ने अपनी ढाल पर उसे रोकते हुए, अपनी तलवार से उसे बीच में से काट कर दो भागों में बांट दिया। यह भीयीत दृश्य और अगम्य साहस, आत्म विश्वास देखकर सम्राट अति प्रसन्न हुआ। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने आश्चर्यपूर्ण कौतुहल देखा है।

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