श्री गुरू हरिगोविन्द जी के पाँच पुत्रा थे। उनका चौथा पुत्रा अटल राय जी बहुत तेजस्वी थे। वह प्रतिक्षण सहज रूप में चिंतनमनन में लीन रहते परन्तु साधारण अवस्था में अपने आयु के बच्चों के साथ सामान्य रूप से खेल कूद में भाग लेते। भजनके प्रताप से उनको वाक्य सिद्धि प्राप्त हो गई वह जो हृदय से कह देते वह तरन्त सत्य हो जाता। अभी उनकी आय केवल नौ वर्ष की ही थी कि एक दिन सीदो-खंडी (हाकी) खेलते समय अंध ोरा हो गया। दिखाई न देने के कारण खेल स्थगित कर दिया गया। अगलेदिन मोहन नामक प्रतिद्वन्द्वी पक्ष का नेता नहीं आया। मालूम करने पर ज्ञान हुआ कि रात को उसे साँप ने डस लिया है जिस कारण उस की मृत्यु हो गई है। यह बात गुरू सुपुत्रा श्री अलट जी को कुछ भायी नहीं। उन्होंने सहज में कहा – वह मसक्रा है वैसे ही बहाना करता है कि बारी न देनी पड़े। चलो उसे घर से उठा कर लाते हैं। श्री अटल जी ने वहाँ पहुँचने पर घर का वातावरण शांत हो गया। अटल जी मोहन की चारपाई पर पहुँचे और उन्होंने अपनी खंडी (हाकी) उस के गले में डाल दी और कहा – बहाने न बना, जल्दी से हमारे साथ चल और अपनी बारी दो। मोहन तुरन्त बिस्तर छोड़कर श्री अटल राय जी के साथ चल पड़ा। यह आश्चर्य देख सभी स्त रह गये। धीरे धीरे इस घटना की चर्चा गुरूदेव तक पहुंची। जब उनको मिलने श्री अटल राय जीआये तो वह बहुत नाराज दिखाई दिये। श्री अटल राय जी ने पूछा कि आज आप मुझ से बोलते क्यों नहीं? इस पर श्री हरिगोविन्द साहब जी कहनेलगे, बेटे तुमने प्रकृति के कार्य में हस्ताक्षेप किया है, तुम मुर्दो को जीवित करने लगे हो। इस प्रकार तुम उस परमात्मा के प्रतिद्वन्द्वी बन गये हो तुमने आत्मबल का दुरूपयोग किया है। अब नगर में कोई मर जाया करेगा तो वह उस मुर्दे को हमारे पास ले आया करेगें कि लो आप इसे जीवित करें। तुम्हारे दादा जी ने अनेकों यातनाएं और कष्ट सहन किये, परन्तु किसी को शाप देकर उस का अनष्टि नहीं किया जब कि उनके पास आत्मबल के भण्डार थे। उनका मानना था कि सब कुछ प्रभु हुक्म से हो रहा है। हुक्ममें सन्तुष्ट रहना ही वास्तिक भक्ति है। अब इस भूल को सुधारना है मोहन तो अब जीवित रहेगा किन्तु उसके पश्चाताप में एक जीवन प्रभु को भेंट करना होगा। यह सुनते ही श्री अटल राय जी घर छोड़कर एकान्त स्थान में समाधि लीन हो गये और आत्मबल से शरीर त्याग दिया।
जब गुरूदेव को इस दुर्घटना की सूचना मिलीतो वह शान्तचित्त रहे और उन्होंने अपने प्रिय पुत्रा की अंत्येष्टि वहीं कर दी। फिर उनकी याद में एक नौ मंजिल वाली इमारत बनवाई और उनको वरदान दिया तेरे इस स्थल से कोई भूखा प्यासा नहीं लौटेगा सदैव भोजन परोसा जाएगा। बाबा अटल जी की स्मृति में लोगों ने किवंदन्तियां प्रचलित कर रखी है –