इस महिला का नाम सुलक्षणी था। उसने सिक्ख से युक्ति को ध्यान से समझा और विशेष तैयारी करके वह प्रतीक्षा करने लगी। एक दिन उसे मालूम हुआ कि श्री गुरू हरिगोविन्द जी चब्बे ग्राम के निकट जंगलों में शिकार खेलने आए हुए हैं, वह तुरन्त उनका रास्ता रोकर खड़ी हो गई। गुरूदेवके पूछने पर कि आप को क्या चाहिए? तो सुलक्षणी ने बहुत आत्म विश्वास से याचना की – हे गुरू नानक देव के उत्तराधिकारी मेरी कोख हरी होनी चाहिए, नहीं तो मैं इस संसार से नपूती चली जाऊँगी। गुरूदेव ने उसे ध्यान से देखा और कहा – माता तेरे भाग्य में सन्तान सुख नहीं लिखा। इस पर सुलक्षणी ने तुरन्त कलम दवात तथा कागज आगे प्रस्तुत कर दिया और कहा – हे गुरूदेव ! आप और प्रभु में कोई अन्तर नहीं। यदि मेरे भाग्य में पहले नहीं लिखा तो कोई बात नहीं, आपकृपा करें और अब लिख दें। इस निर्धारित युक्ति को देख गुरूदेव मुस्कराए और उन्होंने माता से कागज लेकर उस पर एक १ लिखना प्रारम्भ ही किया था उनके घोड़े ने टांग हिला दी, जिससे गुरूदेव की कलम हिलने से एक का सात अंक बनगया। उसे गुरूदेव ने कहा – लो माता तुम एक पुत्रा चाहती थी किन्तु विधाता को कुछ और ही मन्जूर है, अब तुम्हारे यहाँ सात पुत्रा जन्म लेंगे। गुरूदेव का वचन पूर्ण हुआ। कुछ समय पश्चात् माता सुलक्षणी के यहां क्रमशः सात पुत्रा हुए जो गुरू नानक देव जी के पंथ पर अपार श्रद्धा भक्ति रखते थे।