साखी जय राम की - Sakhi Bhai Jai Ram

साखी जय राम की

चेत्र वैशाख के दिनों में एक मनुष्य जिसका नाम जय राम था उसकी जाति पलता थी, सुलतानपुर कस्बे का निवासी था। वह खेतियों के निरीक्षण के लिए तलवंडी में आया। एक दिन वह राय बुलार के निकट बैठा था तब सगाई की बात होने लगी। उसने राय बुलार से कहा कि मुझे अपने लिये किसी क्षत्री की आवश्यकता है! तब अनेक बातों के पश्चात् ब्राह्मण निधे को इस काम के लिये नियत करने का प्रस्ताव राय बुलार ने रखा और कहा कि मैं मुसलमान हूं इस लिये अच्छी प्रकार नहीं कर सकता। यदि आप का रिश्ता हो सके तो कालू बेदी की पुत्री है आप उसे पूछ कर देख सकते हो। मैं भी आप की ओर से कहने को तैयार हूं। तब एक दिन निधे ब्राह्मण ने कालू जी से मिल कर कहा, हे श्री कालू जी! आप भी क्षत्री हैं और जय राम भी क्षत्री है यह संयोग उत्तम है। आप जय राम के साथ रिश्ता बना लें तो अच्छा है। तब कालू जी ने कहा पंडित जी! आप कहते हो अथवा जय राम जी कहते हैं। तब राय बुलार ने केहा पटवारी जी ब्राह्मण के रूप में जय राम ही कह रहा है। तब कालू ने कहा हजूर मैं आप का कहना अस्वीकार नहीं करता।

अंततोगत्वा बीबी नानकी का विवाह सुलतान पुर में किया गया। तब एक दिन कालू जी ने कहा-हे बेटा नानक! तू सुलतान पुर जा कर अपनी बहिन नानकी को ले आओ। गुरु जी ने कुछ टाल मटोल किया। फिर माता तृप्ता ज़ी के बार बार कहने पर श्री नानक देव जी अपने प्रेमी बाले को साथ लेकर सुलतान पुर की ओर रवाना हो गये। बहिन नानकी को मिल कर बहुत ही प्रसन्न हुये। फिर जय राम जी मिले, दोनों ओर बहुत ही प्रसन्नता हुई। दूसरे दिन श्री गुरु जी ने बहिन नानकी को साथ ले जाने का अनुरोध किया। जय राम ने कहा- हे नानक! यदि तुम दोनों अर्थात् तुम और नानकी यहां ही रहो तो मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं तुम दोनों को नहीं भेजना चाहता तब नानकी जी ने कहा कि आप कृपया एक बार तो मुझे भेज दो क्योंकि इस प्रकार मेरे माता पिता भी प्रसन्न रहेंगे। तब जय राम जी ने नानकी जी से कहा, तुम्हारा भाई बहुत उदास है और जाना चाहता है। नानकी जी ने कहा- जैसे आपकी इच्छा हो वही ठीक है। मेरे विचार में आप इस बार नानक के साथ मुझे भेज दो क्योंकि जहां माता पिता प्रसन्न होंगे वहां नानक भी प्रसन्न हो जायेंगे। मैं अपने भाई नानक देव जी से भय मानती हूं। इस बार आप को उसका कथन मानना ही उत्तम है। नानक देव भाई जो कुछ अपनी रसना से कह देता है वही अक्षरषः सत्य होता है। जय राम जी ने नानकी जी के विचार मान लिये तो कहा अच्छा अब तुम जाओ परन्तु कब तक यहां पर आओगे। जय राम को उत्तर में नानकी ने कहा कि जब आप वहां आयेंगे तब अपने साथ ही ले आना। । अंत में भाई बाला गुरु जी और बीबी नानकी तलवंडी की ओर चल दिए। घर में आकर माता पिता को मिले। यह समाचार राय बुलार ने भी सुना कि नानक देव आ गया है, राय बुलार श्री नानक जी से मिल कर अति प्रसन्न हुआ।

जब फिर वैशाख के दिन आये तो फिर खेती के निरीक्षण पर जय राम तलवंडी में आये। तमाम काम से जब फुरसत हुई तब वापस जाने का बंदोबस्त करने लगे। राय बुलार ने जय राम जी का बहुत स्वागत किया। राय बुलार ने कहा-हे जय राम जी! आप मेरे योग्य सेवा बताओ

और एक बात मैं कहनी चाहता हूं वह यह कि आप का ससुर कालू पटवारी स्वभाव का अत्यंत कड़वा है और आप का जो साला श्री नानक है वह तो अत्यंत उत्तम स्वभाव का सन्त पुरुष है, मैं चाहता हूं कि नानक देव जी को आप अपने पास सुलतान पुर ही रखो। नानक देव जी जब महात्माओं से मिलते तथा उन की सेवा करते हैं तब कालू दुखी हो कर अपशब्द कहता है। इस लिए नानक जी को आप अपने पास रखें। इससे यह कुछ काम काज भी सीख जायेगा और पिता के कोप का भाजक भी नहीं बनेगा। जय राम ने कहा मुझे स्वीकार है मैं इसे अपने पास रखूगा और किसी अच्छे घर में इसकी शादी भी करवा दूंगा। तब राय ने कहा-अब नानक तुम्हारे साथ शोभा नहीं देता। दूसरे महीने हम लोग श्री नानक देव जी को आप के पास भेज देंगे। इसकी सगाई उधर ही किसी नेक घराने में करवा देनी। इस कथन पश्चात् श्री जय राम जी द्विरागमण (मुकलावा) लेकर अपने घर को आए।

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