गुरु जी ने बालकों के साथ खेलना - Guru Ji Playing with the Kids

गुरु जी ने बालकों के साथ खेलना

आनन्द मंगल के दिन शीघ्र ही व्यतीत हो जाते हैं। अब श्री नानक देव जी महाराज पांच वर्ष की आयु को प्राप्त हो गये। भाई बाला जी कहने लगे, जब नानक देव पांच वर्ष के हुये तो वयस्क बालकों के साथ खेलने लगे। “होनहार बिरवान के होत चीकने पात” इस उक्ति के अनुसार नानक देव जी जो वस्तु घर से ले जाते वह सब निधर्मों में बांट देते थे। उस के हृदय में दया तथा करुणा का सागर लहरें मारता था।

एक दिन किसी बहुमूल्य वस्तु को नानक ले गये और वह एक अपाहज निर्धन को दे आये। इस पर कालू जी कुछ क्रुधत होकर पंडित हरदयाल जी के घर गये तथा कहने लगे-पंडित जी! आप ने कहा था कि यह बालक छत्रपति होगा। परन्तु यह तो घर ही साफ करने लगा है। छत्रपति क्या होगा! पंडित ने कहा-महता जी आगे आगे देखना होता है क्या? जब इस बालक के जो दिन आयेंगे, तब आप ने तो हम जैसों से बात भी नहीं करनी।।

नानक देव जी का बालकों के साथ खेलना भी विलक्षण ही था। आप जब कहीं बैठते तो सिद्धों की भांति चौंकड़ा मार कर बैठते थे और जब बातें करते तो सिवाय ईश्वर चर्चा के और कोई बात नहीं करते थे। जिस में भक्ति भाव ही प्रधान विषय होता था। नानक को देख कर हिंदू अनुमान करते थे कि यह बालक कोई देवता है तथा मुसलमान उसे कोई पैगंबर ख्याल करते थे। जब नानक देव सात वर्ष की अवस्था में पहुंचे तब कालू जी ने पंडित जी से प्रार्थना की कि आप कृपया महुर्त देख कर बतायें कि नानक को किस दिन अक्षरारंभ करवाया जाये। पांधा जी ने पत्री देखकर कहा कि महता जी! आज का दिन अत्युत्तम है क्योंकि आज मार्ग शीर्ष का मास है और तिथि पंचमी है वार भी बृहस्पति उत्तम है क्योंकि शास्त्र में कहा है कि विद्यारम्भे गुरु अर्थात् विद्या आरंभ करने के समय गुरुवार उत्तम होता है, इसी प्रकार रोहिनी नक्षत्र भी उत्तम है। यह सुनकर बेदी जी अपने घर आये।

अब कालू जी ने पंडित जी के लिये दक्षिणा तथा तिलक पुष्प माला आदि और नानक देव को संग लेकर पंडित जी के घर की ओर प्रस्थान किया। पंडित जी के सामने नानक जी को बैठा कर कालू जी ने कहा – बेटा नानक! अब तू अपने इस गुरु जी से अक्षरों का बोध प्राप्त करो।

उस वेले पांधे ने गणेश पूजा करके फिर नानक की फट्टी के ऊपर कुछ अक्षर लिख दिये। जब नानक का ध्यान अक्षरों की ओर हुआ तब कालू जी प्रसन्न होकर अपने घर की ओर आ गये। समस्त दिन नानक जी पढ़ते रहे। जब सायं काल होने लगा तब छुट्टी लेकर नानक देव घर को आ गये। नानक को पढ़ कर आते देख कर माता जी अत्यंत प्रसन्न हुई। पुत्र का माथा चूमा और प्रेम पूर्वक अपनी गोदी में बैठा लिया। प्यार करने के पश्चात् भोजन करवाया तथा रात्रि को शयन किया।

प्रातः काल नानक देव जी जागे। माता जी ने हाथ मुख धुलाया। नित्य कर्म से फारग होकर नानक देव अपने पिता जी के साथ पाठशाला

की ओर गये। पंडित जी ने नियम के अनुसार पट्टी लिख दी। तब नानक देव ने कहा कि हे पंडित जी! आप कुछ पढ़े लिखे हो अथवा नहीं? पंडित जी ने कहा हम तो कुछ कुछ जानते हैं। जमां खर्च लेन देन आदिक प्रत्येक विद्या हमें कंठस्थ है। फिर पूजा पाठ वेद उपनिषदें आदिक भी हमें याद हैं। तब नानक जी ने कहा-हे पंडित जी! इस विद्या के साथ तो बंधन होता है अर्थात यह विद्या बाप रूप है। उत्तर में पंडित कहने लगा कि वह कौन सी विद्या है जिस से बन्धन न हो? यदि तुझे कुछ ज्ञान है तो मुझे बता। यह समस्त संसार तो इसी विद्या के पढ़ने में कल्याण समझता है।

पंडित गोपाल को संवत् १५३३ मार्ग शीर्ष शुक्ला सप्तमी को श्री नानक देव ने निम्नलिखित सलोक कहा।

श्री राग महला १ ॥ जालु मोहु घसि मसु करि मति कागदु करि सारु॥ भाउ कलम करि चितु लेखारी गुर पुछि लिखु बीचारु॥ लिखु नामु सालाह लिखु लिखु अंतु न पारावारु॥ बाबा एहु लेखा लिखि जाणु॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै होइ सचा नीसानु ॥ १॥ रहाउ॥ |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *