साखी वैद्य की - Guru Nanak and the Doctor

साखी वैद्य की

श्री गुरु नानक मस्तानों की भांति रहने लगे। किसी के साथ बात। चीत न करते तथा ध्यान में लेटे रहना इनकी दैनिक क्रिया हो गई। विरक्तों की भांति संसार के जंजाल काट दिये। समस्त बेदी कुल नानक जी को देख कर दुखी रहने लगी। सभी कहते कि कालू पटवारी का पुत्र पागल हो गया है। जब कोई मित्र आप से मिलने आता तो उससे अपरिचितों की भांति मिलते थे समस्त दिन एकांत वास और उपवास ही में पड़े रहना नानक जी का कर्तव्य बन गया। माता चितांतुर हो कर कहने लगी, हे पुत्र! फकीरों का संग त्याग दो तथा तुम अपनी ओर देखो-उटो खाओ कमाओ और नाम पैदा करो। तुम्हारी ओर देख कर सारा परिवार तथा कुटंबी दुखी हो रहे हैं। पिता की और अपनी कमाई की रक्षा करो। अच्छी प्रकार रहोगे तो तुम्हारा विवाह भी किस सुयोग्य घराने में हो जायगा जिससे मुझे सुख प्राप्त होगा तथा तुम्हारी कीर्ति होगी। तुम्हें मस्त मौला देख कर लोक मजाक करते हैं तथा तेरा नाम ‘नालायकं पड़ गया है। दरिद्री, निबुद्धि तथा बेकार यह शब्द तेरे नाम के साथ विशेषण लग रहे हैं। तुम जानते हो कि शरीकों के शब्द बजर की भांति लगते हैं। मैं सुन-सुन कर जलती रहती हूं। यह सुन कर गुरु जी ने माता जी को कोई उत्तर नहीं दिया। बस वही चाल रही-न बोलना, न खाना, न पहनना। बस पड़े रहना इनका काम रहा। नानक देव जी महाराज उन्मत्त पुरुषों की भांति दृष्टिगोचर हो रहे थे। माता जी के बहुत ही अनुरोध करने पर गुरु जी अल्प सा आहार करते थे और कभी कभी तो निरजल ही दिन व्यतीत हो जाता था। शरीर निर्बल हो गया माता कहे बेटा तुम्हें कौन सी ब्याधि है। कुछ अपनी औषधि करो। मुख पीत वर्ण हो गया है, हे पुत्र! मैं अपने मन की ब्यथा क्या कहूं! हे मेरे भगवान! तू ही कृपा कर मेरे पुत्र को अरोग्यता प्रदान कर मैं दंडवत प्रणाम करती हूं। इस प्रकार माता परमात्मा से प्रार्थना करती थी।

एक दिन माता ने कहा- मैं अभी वैद्य को बुलाती हूं, और तेरा इलाज़ करयाऊंगी। बताओ तुम को क्या रोग है? गुरु जी. मौन रहे। लोग नानक जी की खबर लेने आने लगे तथा आप को मस्ताना देख कर दुखी होते थे। सब ने पटवारी जी को कहा आप चुप चाप मत बैठो। नानक देव का उपचार करने के लिए किसी सुयोग्य वैद्य को बुला कर चिकित्सा करवाओ। तुम्हारा एक ही पुत्र है। धन तो फिर हो जाता है। जीवन पहले है। पुत्र पर अपना धन न्योछावर करना तुम्हारा कर्तव्य है। इलाज़ से नानक देव ठीक हो जायगा। परमात्मा तुम्हारे पुत्र की आयु दीर्घ करे। कालू जी स्वयं उठे और आपके भाई श्री लालू जी, नानक देव जी के पास बैठे रहे। महिता कालू जी एक वैद्य जी को जिनका नाम हरि दास था लेकर गए जहां गुरु नानक मुख पर वस्त्र डाले पड़े थे। वैद्य महोदय वहां पर आये। वैद्य जी ने गुरु की नाड़ी हाथ में लेकर पूछा कि इसे क्या रोग है। कालू जी ने कहा-बस यह दिन रात पड़ा रहता है। बात चीत नहीं करता खान पान से विमुख रहता है। शरीर निर्बल तथा पीत वर्ण हो गया है। यह सुनकर वैद्य ने नाड़ी देखी तो गुरु जी ने अपना हाथ खींच लिया तथा कहने लगे आप ने मेरा हाथ किस लिए पकड़ रखा है। वैद्य जी ने कहा- मैं रोग की पहिचान करने लगा हूं। रोग देख कर उपचार किया जायेगा। तब गुरु जी ने आगे लिखा शब्द उच्चारन किया सलोक महला १ ॥ वैदु बुलाइआ वैदगी पकड़ि ढंढोले बांह् ॥ भोला वैदु न जाणई करक कलेजे माहि॥ १ ॥ मः २ ॥ वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलो रोगु पछाणु॥ ऐसा दारू लोड़ि लहु जितु वंजे रोगा घाणि॥ जितु दारू रोग उठिअहि तनि सुखु बसै आइ॥

रोगु गवाइहि आपणा ता नानक वैदु सदाइ ॥ २ ॥ ॥ अर्थ ॥ पिता जी ने श्री गुरु नानक देव जी का इलाज़ करने के लिये वैद्य बुलाया, वैद्य ने गुरु का बाजू देखा। वह भोला भाला वैद्य गुरु नानक के रोग को नहीं जानता, नानक जी कहते हैं, हे वैद्य! उत्तम वैद्य, मैं तो तब तुमको सुयोग्य वैद्य मानूंगा जब तुम मेरे रोग को पहिचान लोगे और वह दवाई देनी जिससे रोगों का समूह नाश हो जाय और शरीर को सुख हो, गुरु जी कहते हैं यदि ऐसी ओषधि तुम्हारे पास है। तो तब तुम सच्चे वैद्य हो फिर अपना भी रोग दूर करो तब तू सवैद्य है। यह सुन कर वैद्य ने प्रार्थना की-हे महाराज! वह रोग मुझे कहो अर्थात मेरा रोग आप ही बता सकते हैं। गुरु जी ने कहा-हे हरि दास ध्यान से सुनो, पहले तो प्रत्येक प्राणी को अहंभाव का महान् रोग है। जिससे संसार दुखी है। यह रोग जन्म मृत्यु का कारण है। किसी भी उपचार । से यह रोग नहीं जाता जो इस रोग से अपने को दुखी जानते हैं वह दूसरों के रोग किस प्रकार दूर कर सकते हैं? हे वैद! जिस दवाई से यह रोग दूर हो जाय उस औषधि को मैं देखना चाहता हूं। जो अपने रोग को दूर करे वह उत्तम वैद्य है। जो जन्म मरण से रहित हो जाये उसको यह अंहकार का रोग नहीं होता। हे हरिदास! हम तो अपने प्यारे परमेश्वर में समाए हुये हैं इस प्रेम रोग का तो कोई उपचार ही नहीं है। संसारी रोगों के इलाज़ तो अनेक हैं सभ में परमेश्वर व्यापक जाने तथा ईर्षा ना करें। आत्मा एक रस सत् चित आनन्द है। यह उपदेश सुन कर वैद ने कहा-हे कालू जी! आप के पुत्र को कोई रोग नहीं है। आप चिंता न करे। इस ईश्वर भक्ति का रंग चढ़ा हुआ है। यह संसार के रोग दूर करने की सामर्थय रखता है। इतना कह कर वैद्य गुरु जी के चरणों में प्रणाम करके अपने स्थान को चल दिया।

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