मुल्लां की साखी - Mullah ki Sakhi

मुल्लां की साखी

ईश्वर मिलाप की चर्चा से नानक जी बहुत प्रसन्न होते थे। पुत्र की यह अवस्था देख कर कालू जी बहुत चिंतातुर थे। नानक जी की उदासीनता राय बुलार ने सुनी तथा पुत्र दुख से कालू भी दुखी सुना। राय बुलार ने कालू को बुला कर कहा कि नानक को फारसी पढ़ने के लिये मुल्लां के पास भेज दो यह बुद्धिमान हो जायगा। मैं मुल्लां को कह दूंगा कि वह नानक को मुहबत और मेहनत से पढ़ायेगा। कालू जी नानक देव जी को साथ लेकर मुल्लां के पास गये और मुल्लां से प्रार्थना की कि आप मेरे पुत्र नानक को फारसी पढ़ायें। मुल्लां ने कहा हे कालू जी! मैं आपके पुत्र को अपना पुत्र समझ कर पढ़ाना शुरू करूंगा। तब एक रुपया गुरु भेंट रूप नानक जी द्वारा मुल्लां को दिया गया। मुल्लां ने नानक के हाथ में तख्ती दी तथा अलफ से ये तक तमाम हरफ लिख दिये। जब उनका उच्चारण बताने लगा तो श्री नानक देव जिनके हृदय में चारों वेद और तमाम पुस्तकें जिन में कुरान शरीफ भी है, सभी बिराज रही थीं, चुप चाप बैठे रहे। तख्ती और कायदा (फारसी की पहली पुस्तक) अपने आगे ज्यों का त्यों रख छोड़ा। मुल्लां ने देखा कि और लड़के तो पढ़ रहे हैं परन्तु नानक परमात्मा के ध्यान में मग्न है। मुल्ला ने कहा-अरे नानक पढ़ता क्यों नहीं, सबक याद कर। नानक जी ने उत्तर दिया- मैं क्या पढ़े? मुझे आप क्या पढ़ा रहे हो? तो मुल्लां ने कहा मैं तुम को अलफ से ये तक समझा चुका हूं उसको याद करो। जब वह याद हो जायेंगे तब कोई और किताब शुरू की जायेगी। नानक जी ने कहा कि यह हरफ किस काम आयेंगे? मुल्ला ने कहा इस के पढ़ने से बुद्धि बढ़ती है। तब नानक जी ने अलफ से ये तक जितने भी हरफ थे सभी परमात्मा की भक्ति की ओर करके सुना दिये। मुल्लां हैरान हो गया और कहने लगा-तू तो सभ कुछ जानता है, मैं तुझे क्या पढ़ा सकेंगा, तू तो सारे संसार को पढ़ायेगा। कालू को बुला कर मुल्लां ने कहा-बेदी जी! यह आप का साहिबजादा कोई बड़ा भारी वली है। इसने हिन्दू और मुसलमान को समान रूप से इकट्टे करना है। इसने गंगा कांशी मक्का मदीना में अपना यश पैदा करना है।

इधर जब पाठशाला के लड़कों ने सुना कि नानक देव पंडित जी को छोड़ कर मुल्लां से पढ़ने गये हैं। तब नानक जी के प्रेम से सभी लड़के मुल्लां से पढ़ने के लिए आ गये। जो कुछ मुल्लां जी लिखते थे उसे नानक शीघ्र ही सुना देते थे। मुल्लां कहता हे खुदावंद! यह अजीब लड़का है यह तेरी कुदरत है। यह हिंदु और इलम तुरकी-इसे पढ़ना तो निहायत मुश्किल है। इस के पढ़ने में तो कुछ बरस दरकार है। मगर नानक तो कमाल कर रहा है। जो लिखता हूं वह उसी वक्त सुना देता है। इस तरह का जेहन मैंने आज तक किसी को नहीं देखा। इस पर अल्लाह की पूरी मेहरबानी है। जिन लड़कों को दस दस वर्ष पढ़ाते हो गये हैं। यह कल का आया उनसे भी आगे है।

इसके अतिरिक्त जो कोई भी गुरु जी के पास आता था उसे आप ईश्वर सबंधी शिक्षा देते थे। तब आप की स्तुति संसार में होने लगी। सभी कहते कि नानक ईश्वर भक्त है।

नानक देव मुसलमानी भाषा में मुसलमानों की तसल्ली और हिन्दी भाषा में हिन्दुओं की शंकायें दूर करते थे। भाव यह है कि प्रत्येक को पूर्ण करते थे। हिन्दी, फारसी, संस्कृत, अरबी आदिक सभी भाषायें नानक देव जी को कंठस्थ थी।

कुछ काल के पश्चात् नानक देव जी घर में आकर मौन होकर बैठ गये। किसी से बात नहीं करते थे। तब कालू जी ने मुल्लां को बुलाया, मुल्लां ने नानक देव को बुलाया। मुल्लां ने नानक देव पर कोई ज़ोहद (जन्त्र मन्त्र) किया। परन्तु असफल ही रहा। नानक देव मौन रहे। लोग इकठे होने लगे सभी कहते थे कि नानक क्यों चुप हैं। तब चालाक मुल्ला ने कहा-हे नानक! तू अपने परमात्मा के लिए बोल। जब परमत्मा का वासता सुना तो नानक देव मुल्लां के सामने बैठ गये। मुल्लां बहुत प्रसन्न हुआ। कहने लगा, हे नानक! तेरे को पीरों की रक्षा हो। तूं तो खुदावंद करीम का भेजा हुआ है। तेरी पर रब्बी मेहर है। तेरी खामोशी से दुनियां दुखी होती है। जरा बोलो, नानक देव जी ने मुस्करा कर राग तिलंग में एक शब्द उच्चारण किया।

राग तिलंग महला १ ॥
यक अरज गुफतम पेसि तो दर गोस कुन करतार ॥
हका कबीर करीम तू बेऐब परवदगार ॥

इसका अर्थ गुरु जी कहते हैं। हे साहिब! तेरे आगे मेरी एक प्रार्थना है उसे आप कान लगा कर सुनो। तू कैसा है? करतार करन कारण है। मनुष्य दुर्गुण की कान है। परमात्मा अनंत है। सब की पालना करता है। उसके बगैर और कोई नहीं।

तब मुल्ला ने कहा हे नानक! तेरे मौन रहने से जनता दिलगीर हो जाती है। अब उठो-तब नानक देव जी ने पउड़ी दूसरी उच्चारण की
दुनीआ मुकामे फानी तहकीक दिल जानी॥

मम सर मूई अजराईल गिरफतह दिल हेचि न दानी॥ १ ॥ रहाउ । ॥ अर्थ॥ नानक देव जी कहने लगे – हे मुल्लां साहिब! यह संसार नाश होता जा रहा है। मैं किस से बात करूं? यह सत्य है कि जिस मनुष्य के सिर के बाल फरिश्ते ने अपने हाथ में पकड़े हुले हैं वह इसे एक आध पल में ले जायेगा। हे मुल्लां! इसे मनुष्य नहीं जानता कि, मेरे सिर के बाल यम के हाथ में हैं। मुझे अपने मरने की चिंता नहीं। यह भी नहीं जानता कि मेरा कुछ बनेगा। मुझे यह अचंभा है कि मनुष्य को और कुछ किस प्रकार सूझता है। मुल्लां ने उत्तर दिया-नानक, अभी तुम अल्प ब्यस्क हो। इस वैराग्य में पड़ने का अभी समय नहीं है। युवा होने पर तब जो इच्छा होगी करना। नानक जी ने कहा-हे मुल्लां! जो आदमी किसी का दास होता है। भले ही वह आयु में छोटा हो परन्तु जहां तक उस में शक्ति होती है वहां तक अपने स्वामी की सेवा करता है। यदि उस प्रभु की सेवा स्मरण आदिक न करूं तो मुझ में कृतघ्नता दोष आयेगा। नानक देव ने कहा कि जब इस पुरुष को अंत समय यमराज पकड़ेगा उस समय इस की सहायता कोई भी नहीं कर सकता! उस समय कोई मित्र नहीं बनता। प्रभु नाम बिना कोई रक्षक नहीं होता। जिस पर अकाल पुरुष कृपा करे उसे ही छुड़ा लेता है।

मुल्लां ने कहा-नानक! तेरे अहोभाग्य हैं। तुम ने उस परमात्मा की कृपा अल्प आयु में ही प्राप्त कर ली। ईश्वर की अनुकम्पा से तुझे सही ज्ञान प्राप्त हुआ है। तुम में कोई भी बुराई नहीं है और न ही होगी। यह सुन कर श्री नानक देव जी ने तीसरी पउड़ी उच्चारण की

जन पिसर पदर बिरादरां कस नेस दसतंगीर॥ आखिर बिअफतम कस न दारद चूं सवद तकबीर॥ २ ॥
सब रोज गसतम दर हवा करदेम बदी खियाल ॥ गाहे न नेकी करदम मम ईं चिनी अहवाल॥ ३ ॥

॥ अर्थ ॥ गुरु जी कहते हैं मुल्लां जी! परमेश्वर मार्ग की बात तो यह जीव करता नहीं और निंदा करता रहता है तथा आठों याम यह आलस्य में रहता सभी की बुराई में लगा रहता है। सदैव इसकी द्दष्टा दोषमय रहती है। यह जीव आलस्य का मारा बेलगाम फिर रहा है। हे मुल्लां यह मनुष्य एक क्षण परमात्मा का भजन नहीं करता। मैं उस परमात्मा का सेवक हूँ।

यह सुन कर मुल्लां ने कहा-हे नानक! त तो उस मालक के साथ जुड़ गया हैं। तब गुरु नानक जी ने चतुर्थ पउड़ी का उच्चारण किया बदबखत हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक ॥

नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पा खाक॥ ४ ॥ ॥ अर्थ ॥ गुरु नानक जी कहते हैं-मुल्लां जी! परमात्मा को जान लेने की बात यह इन्सान नहीं करता, प्रत्येक की बुराई करता है। आठों याम आलस्य में रहता है, बुराई करता है। गफलत का मारा हुआ शुतर बेमुहार है। जो ईश्वर के भक्त हैं वह मृत्यु को सदैव याद रखते हैं। मैं उनके पांव की रज हूँ। यदि वे कृपा करें तो मैं कृत्य कृत्य हो जाऊंगा। इस जीव के सिर पर ऋण है जिसे चुकाना होगा और यह कहता है कि मेरे सिर पर कोई ऋण नहीं है। बेफिकर फिर रहा है। मैं परमात्मा से प्रार्थी हूं कि हे परमात्मा मैं तेरे दामन का दास हूँ। मेरे हृदय में गरीबी का वास हो। यह सुन कर मुल्लां ने कहा-नानक! तू तो परमात्मा से मिला हुआ है हम लोगें की रक्षा तुमने ही करनी है। हमारी प्रार्थना उस मालक के दरबार में तुम ने स्वीकार करवानी है। गुरु जी ने कहा-आप भी उस प्रभु को स्मरण किया करो तब तुम्हारा भी कल्याण होगा और मैं भी आपकी सहायता करूंगा। यह सुन कर मुल्लां ने गुरु जी को नमस्कार करके गुरु चरणों पर अपना सिर रखा तथा घर को गया। गुरु जी के पवित्र उपदेश से मुल्लां भी भक्ति के रंग में रंगा गया। संसारी विषयों को त्याग कर प्रभु भजन करने लगा तो अंत में प्रभु के धाम को गया।

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