साखी एक अतीत की - Sakhi of Past

साखी एक अतीत की

श्री गुरु नानक देव जी महाराज की आयु बीस वर्ष की हो गई तथा इन का रहन सहन उसी प्रकार मस्ती में भरा हुआ था, वही चाल थी, जो बचपन से चली थी। जिधर मन माना चले जाना और जहां बैठना वहीं बैठे रहना। शरीर धरती पर और मन अकाल पुरुष की ओर लगाये रहना यह आपकी दिन चर्या थी।

एक दिन एक साधू वहां आया, जिस ने नगर के बाहर आसन लगाया तब नानक जी उसके पास जा बैठे। उस समय श्री नानक जी के हाथ में एक स्वर्ण की मुंदरी थी तथा एक गड़वा (लोटा) था। उस साधू ने गुरु जी का परिचय पूछा। उत्तर में गुरु जी ने कहा- मैं क्षत्री का पुत्र हूं। लोग मुझे नानक निरंकारी के नाम से बुलाते हैं। उस साधू ने कहा – हे नानक! आप निरंकारी हो और हम निरंकार के हैं। इस लिए हमें कुछ खाना दीजिए। इस लिये गुरु जी ने अंगूठी और गढ़वा साधू के आगे रख दिया। उसने कहा यह अंगूठी और गढ़वा आप अपने पास ही रखो। गुरु जी ने उत्तर दिया पुरुष को चाहिये जो कुछ कहे उसी पर अमल करे। तब साधु ने कहा-हे नानक! तुम सत्य रूप में निरंकार हो तथा हम मिथ्या ही निरंकार के बनते हैं। तब श्री गुरु जी अपने घर को आ गये। गड़वा और अंगूठी लेकर साधू नौं दो ग्यारह हो गया।

कालू जी ने पूछा नानक! लोटा और अंगूठी कहां है। गुरु जी खामोश ही रहे। अति कुपित होकर कालू ने कहा कि नानक तेरा मेरे घर में ठहिरना कठिन है। अभी निकल जाओ। मैं तुम को अपने घर में नहीं रख सकता। मैं तुम्हें समझा कर थक गया हूं। परन्तु तुम्हें ज्ञान नहीं होता इस लिये जिधर मन माने चले जाओ। इस बात की सूचना राय बुलार को मिली तब राय बुलार ने कालू को बुला कर कहा, हे कालू! आज फिर क्या हो गया है। कालू ने रोष से कहा कि हजूर आज मेरा अनोखा लाल लोटा और अंगूठी कहीं छोड़ आया है तथा बताता तक नहीं तब बुलार ने धैर्य देते हुओ कहा कि नानक को श्री जय राम जी के पास सुलतान पुर भेज दें तो ठीक है। यहां तुम भी प्रतिदिन क्रोध करते हो और नानक भी दुखी होता है। जय राम जी के निकट निवास करके किसी काम में लग जाएगा और ठीक हो जायगा।

कालू जी ने बुलार का कथन मान लिया। बुलार ने एक पत्र अपनी ओर से जय राम जी को लिख कर अपने पुरुष के साथ श्री नानक देव को सुलतान पुर भेज दिया। उस पत्र में लिखा कि आप इसे भली प्रकार रखें तथा किसी काम पर लगायें। केवल रिश्तेदारी ही न जानना। अपितु इसे अपना समझ कर प्रसन्न रखना। नानक जी के प्रस्थान पर माता तृप्ता उदास होकर कहने लगी, बेटा! मैं तुम्हें देख कर अति प्रसन्न होती थी। अच्छा ईश्वर तुम्हें आयु प्रदान करे। श्री गुरु जी ने माता को दुखी देख कर कृपा दृष्टि से निहारा। जिस से माता को जो मोह हुआ था वे दूर कर दिया। फिर कहा, माता जी! सौ बात की एक बात कहता हूं कि आप ने उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को सदैव स्मरण करना। इतना कह कर तथा सब को प्रणाम कह कर बाले को साथ लेकर गुरु जी सुलतान पुर की ओर चल दिये।

पांचवें दिन गुरु जी सुलतान पुर पहुंच गये। संवत् १५४४ मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी को गुरु जी अपनी बहिन बीबी नानकी को जा मिले। बीबी नानकी अपने भाई के चरणों पर गिर पड़ी। गुरु जी ने शीघ्र ही उठा कर कहा, बहिन जी! आप बड़ी हो इस लिये इस प्रकार चरणों पर गिरना उचित नहीं है। मुझे आपके चरणों पर अपना सिर रखना योग्य है। बीबी जी ने कहा, नानक! यदि तुम साधारण मनुष्य होते तो मेरे ही पांव छूने उचित थे। परन्तु आप तो साक्षात्कार ईश्वर हो और संसार के उद्धार करने को प्रकट हुए हो। यह कह कर आदर सत्कार से सुन्दर आसन पर बैठाया तथा कुशल मंगल पूछने लगी।

इतने में श्री जय राम जी घर में आये तो क्या देखते हैं कि श्री । नानक देव जी घर में बिराजमान हैं। नानक देव जी अपने बहिनोई के चरणों में लगकर प्रणाम करने लगे। जय राम भी बुद्धिमान था, उसे भी ज्ञान था। उसने गुरु जी को उठा कर फिर स्वयं उनके चरण स्पर्श किये। गुरु जी ने मुस्करा कर कहा, जीजा जी! यह उल्टी गंगा क्यों बहाने लगे हो अर्थात नमस्कार तो मुझे करनी उचित है। परन्तु आप उल्टा क्यों कर रहे हो। तब जय राम जी ने कहा, हे गुरु जी! संसार की दृष्टि में भले ही आप मेरे साले हैं परन्तु मेरे नेत्रों में बैठ कर देखो तब सत्य तत्व का पता चलता है। मैं जानता हूं कि आप संसार को तारने को मनुष्य बन सच्चिदानंद ही प्रकट हुये हो यह मेरी दृढ़ धारणा है। आज मेरे जैसा भाग्यशाली और कौन है कि जिसके घर में समस्त संसार का स्वामी बिराजमान हो। अब आप को कोई भी तकलीफ न होगी। जिस कार्य के लिए आप ने नर तन धारण किया है उसी कार्य को निःसंकोच करो। तब गुरु जी ने कहा कि यदि लोक हित के लिए कोई काम किया जाये तो अच्छा है। जय राम ने कहा जैसे आप की इच्छा। अच्छा आप यह बताओ कि आप ने तुरकी भाषा सीखी है या नहीं? गुरु जी ने कहा योग्य कार्य होता ही रहेगा तब जय राम ने कहा कि यदि आप को नवाब दौलत खान का मोदी खाना लेकर अफसर बनाया जाय तो अच्छा है परन्तु नवाब का मोदी खाना बड़ा है। गुरु जी ने कहा-कोई बात नहीं वह करतार सब कुछ करने को सामर्थ्य है। श्री गुरु नानक देव जी मोदी खाने का कार्य भार को सहन करने के लिये तैयार देखे तो नानकी ने कहा भाई जी मेरा विचार है कि अपनी प्रकृति के अनुसार भजन ही करो तो ठीक है। जहां भगवान हमें खाने पहिनने को देता है वहां आप का भी गुजारा हो सकता है। आप तो परमात्मा के रूप हो फिर नानकी जी ने जय राम जी से कहा कि आप नानक देव जी को संसारी झंजटों में न डालो। मेरा भाई तो साधुओं का प्यारा है। इस से काम नहीं लेना चाहिये। इस पर श्री गुरु नानक देव जी कहने लगे बहिन जी! पुरुष को सदैव कमा कर ही खाना उचित है। इस से पवित्रता होती है। तब नानकी जी ने कहा-जैसे आपकी इच्छा।

फिर नानकी जी ने जय राम से कहा कि आप मेरे भाई की सगाई का भी ध्यान रखें। जब भाई गृहस्थी हो जायगा तब कमाई की ओर भी स्वयं अग्रसर हो जायगा। जय राम जी ने कहा, सुनो जी जव काम पर लग जायेगा तब स्वयं सगाईयें चली आयेंगी। इसकी चिंता व्यर्थ है। उतावली होना ठीक नहीं। तब नानकी जी ने कहा, मैं तो नादान हूं और आप बुद्धिमान हैं। जो कुछ भी उचित होगा वही करेंगे।

तब जय राम जी ने मार्ग शीर्ष शुक्ल चतुदर्शी के दिन नवाब दौलत खां से गुरु जी का मेल करवाया और जय राम जी ने नवाब को कहा कि आप ने एक बार मोदी खाने के लिए कहा था, सो आपके हुकम अनुसार यह जवान जिसका नाम नानक देव है, लाया हूं। आप इसे मोदी खाने का काम दो। नवाब ने श्री गुरु जी की मन मोहनी ईश्वरीय सूरत देख कर प्रसन्न होकर कहा कि नानक देव बुद्धिमान दृष्टि गोचर होता है। आशा है कि मोदीखाने को भली प्रकार संभाल लेगा, यह कह कर मोदी खाने पर श्री नानक देव जी को लगा दिया गया। बीबी नानकी को अति प्रसन्नता हुई।

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