‘गुरू रामदास जी के दर्शन किये और 101 मोहरें आगे रखीं और गुरू जी की इच्छानुसार (गुरू) अर्जुन देव जी ने उठा कर गरीबों, मुहताजों को बांट दीं। जब अकबर ने 12 गांवों की जागीर इन के नाम करने का अपने कारदार को कहा तो गुरू रामदास जी बोले फकीरों की जागीर चारो चक है। हम गुरू नानक जी के घर को किसी जागीरदार का नहीं करना चाहते।’ जिस तरह मेघ बरसे तो सावन में मच्छर, भिंड आदि पैदा होते हैं और दुखदाई होते हैं वैसे ही जागीर भी काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, झगड़े पराधीनता, लड़ाई झगड़े पैदा करने वाली है।’ सतगुरू जी की बेबाकी का अकबर के मन पर गहरा असर हुआ और उसने सतगुरू जी की अज़मत के सामने शीश निवाया।