ज्योति में विलीन होना - Jyoti Mein Vileen Hona

अकबर का आगमन

गुरू रामदास जी लाहौर से वापिस अमृतसर आए ही थे कि बादशाह अकबर भी काबुल की लड़ाई से वापिसी पर सन 1579 में श्री अमृतसर आया। गुरु दरबार की शोभा और शहर की रौनक देख कर हैरान रह गया। ज्ञानी ज्ञान सिंघ जी ने अकबर के आने का वर्णन इस प्रकार किया है :

‘गुरू रामदास जी के दर्शन किये और 101 मोहरें आगे रखीं और गुरू जी की इच्छानुसार (गुरू) अर्जुन देव जी ने उठा कर गरीबों, मुहताजों को बांट दीं। जब अकबर ने 12 गांवों की जागीर इन के नाम करने का अपने कारदार को कहा तो गुरू रामदास जी बोले फकीरों की जागीर चारो चक है। हम गुरू नानक जी के घर को किसी जागीरदार का नहीं करना चाहते।’ जिस तरह मेघ बरसे तो सावन में मच्छर, भिंड आदि पैदा होते हैं और दुखदाई होते हैं वैसे ही जागीर भी काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, झगड़े पराधीनता, लड़ाई झगड़े पैदा करने वाली है।’ सतगुरू जी की बेबाकी का अकबर के मन पर गहरा असर हुआ और उसने सतगुरू जी की अज़मत के सामने शीश निवाया।

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