अमृतवेला की संभाल - Amritvela Handle (Guru Ram Das Ji)

अमृतवेला की संभाल – Amritvela Handle (Guru Ram Das Ji)

भाई मइया, भाई जापा, भाई नइया और भाई तुलसा आदि सिखों ने विनती की कि हम तो गृहस्थ में लिपटे पड़े हैं, कोई उद्धार की राह बताओ।

गुरू जी ने उपदेश किया कि जैसा घर के काम काज को प्यार करते से तैसा ही गुरबाणी से भी प्यार करो। पहर रात रहते, अमृत बेला में उठ कर गुरबाणी को श्रद्धा सहित पाठ करो। जब बाणी के अर्थों की ओर ध्यान दोगे तो मोह टूट जाएगा। बाणी का उच्चारण व विचार करना ही गुरू जी का सम्मान करना है। मन को हमेशा ही पूछते रहें, क्या गुरू द्वारा दर्शाए मार्ग पर चल रहा है?’ इस प्रकार धीरे-धीरे मन का रुख बदल जाएगा। परिवार वारा प्रीति कम सेगी और प्रभु प्रीति जागृत होगी। दिन को भी प्रभु की याद में जुड़े रहना है, पर कारोबार नहीं छोड़ा। अमृत वेला में, प्रभु के स्तुति गायन में मन लगाने से दिन उल्लासमय व्यतीत होता है। मोह का रोग नहीं व्याप्त होना। काम काज करते हुए ध्यान वाहिगुरू की ओर रखना है।

रिदा धरहु सतिगुर के संग अमर क्रिया करि यहि सभ अंग।

सिरवों ने गुर उपदेश हृदय में बसाया। वे गुरू प्यारे व आचारी (उच्च व निर्मल जीवन वाले) प्रसिद्ध हुए।

मईआ जापा जाणीअनि, नईआ खुलुर गुरू पिआरा। तुलसा वहुरा जाणी), गुर उपदेश अवेस अचारा।

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