आत्मिक सुख की प्राप्ति - Attain Spiritual Happiness (Guru Ram Das Ji)

आत्मिक सुख की प्राप्ति – Attain Spiritual Happiness (Guru Ram Das Ji)

भाई महां नंद जी व भाई बिधी चंद जी मुरू जी की शरण आए। एक दिन कहने लगे, ‘हे सच्चे पातशाह जी! सुख की प्राप्ति के लिए जगह-जगह भटकते रहे हैं पर अंत:करण का सुख कैसे प्राप्त हो सकता है। और जन्म व मृत्यु का दुख कैसे दूर किया जा सकता है?

सतगुरू साहिब ने सहज ही कम, ‘गुरसिखो! अपने स्वरूप को पहचानो, फिर दुख के बंधन कट जाएंगे।’ तब दोनों सिखों ने कहा, ‘सतगुरू जी, हम अपना स्वरूप तो यही जानते हैं कि हम क्षत्रियों के पुत्र हैं, जाट है। इस से अधिक हमें कुछ पता नहीं।’ उत्तर सुनकर सतगुरु जी मुस्कुराए और कहा, ‘यह जाट क्षत्रीय लो आपको माता पिता ने कहा है, या लोग कहते हैं। हम इस बाह्य स्वरुप की बात नहीं करते, आंतरिक स्वरूप की बात करते हैं। शरीर में कोई अन्य वस्तु भी है, जिसके आश्रय आप चल फिर रहे हो, काम काज करते हो। अंदर यदि हरि की ज्योति है, वह मूल वस्तु है। उस के बिना तो शरीर केवल मिट्टी मात्र है। तब सिखों ने कहा, ‘अपना स्वरूप कैसे पहचानें? आंतरिक ज्योति से निकटता कैसे बने ?” गुरू महाराज जी ने वचन किया : सदा नियम से कथा कीर्तन सुनो। संगत की सेवा प्यार से करो। बाणी पढ़ो, बाणी के अर्थों पर विचार करते हुए अपने हृदय को तोलते रहो। सावधान रहो। जब मनु डोलने लगे, बाणी की विचार से उसे थाम लो। ऐसा करने से स्वरूप की पहचान हो जाएगी।

सति संगति कीजहि चित लाई। कथा नेम ते सुनीअहि कान। गुर सिखन सेवहु हित ठानि।।१४।। करहु बिचारन सतिगुर बानी। अरथ लखहु करि प्रीत महानी। तिस के साथ रिदा निज तोलह। दुख सुख बिवै ना कबहूँ डोलहु।।१५।।

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