जब पहर रात रहै अंमृत वेला।। । गुर करै इश्नान भगत सुख केला।। तिस समै बीबी जी दरसन करै।। गुर की भगत सद हिरदै धरै।।
यह सेवा, बीबी जी बेटी होने के कारण ही नहीं करते थे, बल्कि एक सिख के रूप में करते थे। सिखी मार्ग पर चलने का चाव जो था। उन की इस भावना को सूरज प्रकाश के कर्ता ने इस प्रकार वर्णित किया है :
रहै निंम बहु सेव कमावहि। अनुसारी हुइ सदा चिंतावहि।
मन को दृढ करके, सुरति को टिकाते थे। पर इस को प्रकट व प्रदर्शित बिल्कुल नहीं करते थे। वे कहते थे कि दिखलावे से शुभ गुणों का लाभ नहीं होता है।
आछे काम दिखाइ न चाहै।। लाभ घटै पाखंड इस माहै।।
ऐसे ऊंचे व निर्मल गुणों के मालिक थे, बीबी भानी जी। उनके लिए उचित वर, जेठा जी ही हो सकते थे। तो ही तो गुरू अमरदास जी ने उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि और अति गरीबी की दशा को नजरअंदाज करके, उन के उत्तम विचारों, धार्मिक लगन, सेवाभाव को ध्यान में रख कर, बीबी भवानी के लिए उन्होंने (जेठा जी) को चुना था।