विवाह बीबी भानी जी - Vivah Bibi Bhani Ji (Guru Ram Das Ji)

विवाह बीबी भानी जी – Vivah Bibi Bhani Ji (Guru Ram Das Ji)

जेठा जी की जीवन-शैली ने गुरु अमरदास जी का मन तो पहले ही मोह लिया था। पिछले बारह-तेरह वर्षों की निकटता ने यह सिद्ध कर दिया था कि जेठा जी गुरसिखीके मार्ग की सीढियों पर सहज- सहज चढते जा रहे थे। उन के ऐसे जीवन को देखकर गुरू अमदास जी ने अपनी सपुत्री बीबी भानी जी का विवाह उन के साथ सन 1553 में कर दिया। यह जोड़ी है भी बहुत आदर्श थी। जहां जेठा जी गुरमति – गुणों से परिपूर्ण थे, वहीं बीबी भानी जी भी गुरु उपदेशों पर चलने वाले थे। उन्होंने सेवा करके गुरू पिता के दिल में विशेष स्थान बनाया हुआ था। बीबी जी स्वभाव के अति सुशील, संयमी, नम्रता वाले व श्रेष्ठ बुद्धि के मालिक थे। उनके द्वारा गुरू पिता द्वारा की गई सेवा का वर्णन महिमा प्रकाश में इस प्रकार किया गया है :

जब पहर रात रहै अंमृत वेला।। । गुर करै इश्नान भगत सुख केला।। तिस समै बीबी जी दरसन करै।। गुर की भगत सद हिरदै धरै।।

यह सेवा, बीबी जी बेटी होने के कारण ही नहीं करते थे, बल्कि एक सिख के रूप में करते थे। सिखी मार्ग पर चलने का चाव जो था। उन की इस भावना को सूरज प्रकाश के कर्ता ने इस प्रकार वर्णित किया है :

रहै निंम बहु सेव कमावहि। अनुसारी हुइ सदा चिंतावहि।

मन को दृढ करके, सुरति को टिकाते थे। पर इस को प्रकट व प्रदर्शित बिल्कुल नहीं करते थे। वे कहते थे कि दिखलावे से शुभ गुणों का लाभ नहीं होता है।

आछे काम दिखाइ न चाहै।। लाभ घटै पाखंड इस माहै।।

ऐसे ऊंचे व निर्मल गुणों के मालिक थे, बीबी भानी जी। उनके लिए उचित वर, जेठा जी ही हो सकते थे। तो ही तो गुरू अमरदास जी ने उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि और अति गरीबी की दशा को नजरअंदाज करके, उन के उत्तम विचारों, धार्मिक लगन, सेवाभाव को ध्यान में रख कर, बीबी भवानी के लिए उन्होंने (जेठा जी) को चुना था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *