गोइंदवाल में घाल कमाई (कर्मठ व्यवहारिक जीवन) - Earning in Goindwal

गोइंदवाल में घाल कमाई (कर्मठ व्यवहारिक जीवन) – Earning in Goindwal (Guru Ram Das Ji)

सिख गुरू साहिबान यह बात भली-भांति जानते थे कि सिखों के न्यारेपन को कायम रखने के लिए और इस नवोदित धर्म को पराधर्मियों के प्रभावों व कुचालों से बचाने के लिए, सिखे प्रभावी नगर बसाने बहुत जरूरी हैं। वे चाहते थे कि एक ऐसे स्थान पर सिख एकत्र हो कर रहें तो एक दूसरे से प्रोत्साहन ले कर अपने जीवन को सिख मर्यादा के अनुसार ढालकर व सिखी में परिपक्व हों। इसी विचार के अनुसार गुरू नानक देव जी ने करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) नाम का नगर बसाया। गुरू अंगद देव जी ने खडूर साहिब को सिखी का केंद्र बनाया और उन्होंने गोइंदवाल नगर भी बसाया। इस नगर को बसाने की जिम्मेवारी उन्होंने अपने प्यारे सिख (गुरू) अमरदास जी को सौंपी। (गुरू) अमरदास जी की प्रभावशाली अगवाई और सिख संगत की कार – सेवा द्वारा इस नगर का 1546 में निर्माण हो गया। दूसरी पातशाही के आदेशानुसार (गुरू) अमरदास जी अपने गांव बासरके से अपने सगे संबंधियों और अन्य श्रद्धालु सिखों को गोइंदवाल में ले आए। जेठा जी अपने छोटे बहन- भाई और नानी सहित इस नये नगर में आ गए। उन की आयु उस समय 12 वर्ष की थी।

गोइंदवाल और खजूर में कोई तीन चार मील की दूरी थी। इस प्रकार जेठा जी के लिए गुरु अंगद देव जी के दरबार में पहुंचना बहुत आसान हो गया। गुरू पातशाह जी के दर्शन व पवित्र वचनों, और हजारों सिखों के गुरू की हजूरी में जुड़ बैठने के नजारे ने, जेठा जी के मन पर सोने पर सुहागे वाला काम किया। सिखों की लगन तो उन को (गुरू) अमरदास जी से लग गई थी। अब सिरवी में विश्वास परिपक्व हो गया और गुरू पातशाह के प्रति श्रद्धा का समुंद्र मन में उमड़ने लग गया। साध संगत की सेवा की लगन भी लग गई। सेवा में से कोई अगम्य आनंद आने लग गया। मुरू अमरदास जी जेठा जी को 7 वर्ष की आयु से ही देख रहे थे। इस बच्चे के अंदर सिवी श्रद्धा, प्रेम और सेवा भाव को देख कर वह बहुत खुश होते थे। यही कारण था कि वह अपनी बच्ची, बीबी भानी के लिए जेठा जी को योग्य वर समझने लग गए थे।

सिख इतिहास के अनुसार जेठा जी गोइंदवाल में भी घुघणियां बेचने का कारोबार करते रहे। इस बात की संभावना भी है कि उन्होंने कोई छोटी-मोटी दुकान भी डाल ली हो, क्योंकि नए नगर में दुकानों का बनना एक स्वाभाविक बात थी।

जनवरी 1552 तदनुसार 1 माघ संवत 1609 को गुरू अंगद देव जी ने सारी संगत को एकत्र करके (गुरू) अमरदास जी को गुरू नानक पातशाह की गद्दी सौंप दी। गुरू नानक देव जी की बाणी का संपूर्ण संग्रह, अपने द्वारा रची बाणी सहित, गुरू अमरदास जी को सौंप दिया। 29 मार्च सन 1552 को गुरू अंगद देव जी ज्येति में विलीन हो गए। गुरू अमरदास जी स्वडूर से गोइंदवाल आ गए। उस समय (गुरू रामदास जी की आयु 19 वर्ष की थी।

श्री गुरू अमरदास जी ने नए नगर, गोइंदवाल को सिखी के प्रचार का केंद्र बना दिया। जैसा कि पहले संगत खडूर साहिब में आ जुड़ती थीं, अब वे श्री मुरू अमरदास जी के दरबार में हुम- हुमा कर आने लग गई। जेठा जी अपना अधिकांश समय संगत की सेवा में ही लगे रहते। शारीरिक आवश्यकताएं तो उन्होंने बहुत कम कर ली थीं इसलिए थोड़ी बहुत रोजी कमाकर ही गुजारा कर लेते थे। चाहे लंगर तो खुला बंटता ही था, पर आप अपनी मेहनत करके ही आहार किया करते थे। आप एक सच्चे सिख के रूप में घालि खाइ किछु हथहु देइ के महान गुर -उपदेश के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहे थे।

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