एक दिन तीन प्रेमी गुरसिखों – भाई पदारथु, भाई तारू और भाई भारू जी ने भरे दीवान में गुरू जी के सम्मुख विनती की कि हम तो गृहस्थ कुटुंब वाले हैं, परिवार का पालन करने के लिए काम धंधे में व्यस्त रहते हैं। हमारा कल्याण कैसे होगा ?
गुरू पातशाह ने उन को समझाया कि यह ख्याल भन में से निकाल दो कि परिवार को पालने वाले हम हैं। बल्कि सब को पालने वाला प्रभु स्वयं अकाल पुरस्व ही है। उसने हमारी उपजीविका के सारे प्रबंध किये हुए हैं। हमारा कर्तव्य इतना ही बनता है कि हमें प्रभु के नाम का जाप कर, उसका स्तुति गायन करें, सच्ची सुच्ची मेहनत मजदूरी करें और अपनी नेक कमाई से जरूरतमंदों की सेवा करें या धर्म के कार्यों की पूर्ति हेतु दसवंध निकालें। आय का दशांश्च निकाले। इस गुरमत गाडी राह पर चलते हुए कल्याण अवश्य होगा।
मुक्ति प्राप्ति की यह आसान व सहज ही समझ आने वाली राह है। पारिवारिक कर्तव्य भी इस राह में कोई रुकावट नहीं बनते। जरूरत तो है केवल प्रभु पर पूर्ण भरोसे की और मूरू के बताए मार्ग पर दृढ़ता से चलने की। तीनों ही प्रेमी गुरसिखों ने गुर-उपदेशों के अनुसार अपना जीवन ढाल लिया और अंततः गुरू दर के खास सेवक के तौर पर प्रसिद्ध हुए।
पुरस्लु पदारथ जाणीझै। तारू भारू दास दुआरा।