मानसिक शांति कैसे हो - How is Peace (Guru Ram Das Ji)

मानसिक शांति कैसे हो – How is Peace (Guru Ram Das Ji)

धर्म मार्ग के राहियों की प्रबल इच्छा मानसिक शांति होती है। संसार के झमेलों में मनुष्य को कई प्रकार की चिंताएं घेरे रखती हैं। माया भिन्न-भिन्न रूपों में धर्म- मार्ग की राह में आ खड़ी होती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकार मानव के मन पर हमला करते रहते हैं। दुख, बीमारी, गरीबी व अन्य मुसीबतें मनुष्य को चिंता आदि की गहरी खड्ड में डाले रखती हैं। विचारवान मनुष्य ऐसी दशा से बचने के उपाय सोचते रहते हैं। ऐसा वे केवल अपनी सुख शांति के लिए नहीं सोचते, बल्कि प्रत्येक प्राणी मात्र के कल्याण के लिए सोचते हैं और प्रयास करते हैं।

गुरू रामदास जी का एक प्रमुख सिख भाई तीरथा था। एक बार वह अपने रिश्तेदारों व संगी-साथियों के साथ गुरू दरबार में आया। गुरू पातशाह को विनती की कि हे पातशाह ! हमारा कलियुगी जीवों का मन नहीं टिकता है। संसार में लोग शांति के लिए भटक रहे हैं, पर मन को चैन नहीं आता। आप कृपा करके मन को बस में करने का व माया से तप रहे मन को, शांत करने का उपाय बताएं। भाई तीर्था जी की यह विनती वास्तव में उनके साथ आई संगत के कल्याण के लिए थी। सतगुरू जी ने कहा कि सच्चे प्रभु के नाम में सुरति जोड़ने से व सत्य को जीवन का आधार बनाने से ही मन वश में आ सकता है। इसलिए हर उस पूजा को छोड़ देना चाहिए, जो मन-वृत्ति को छिन्न-भिन्न करती है। यथाः

मढ़ी मसाण पीर मकान। मानन पूजन इनै न ठानो।

जहां सच्चे (अमर) प्रभु की स्तुति गायन करना है, वहीं व्यवहार भी सत्य का करना है – मुंह से भी सत्य बोलना है, और दिल का भी सच्चा रहना है। सत्य के व्यवहार से सच्चे प्रभु में अभेद हुआ जा सकता है। सारखीकार ने, गुरू जी के इन कंचनों को इस प्रकार चित्रित किया है :

एक अकाल उपाशो पिआरे। छको, धर्म की कर सभ कारे करो साच का संभ बिवहार। सुख संपति जयों बढे अपार एक ब्रोल इक तोल रखीजै। सुक्रित करो सरब दुख छीजै।

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