जात अभिमानियों ने फिर भी दिल नहीं छोड़ा ओर गोइदै के पुत्र को अकबर के दरबार में भेज दिया। उसने अपने आप को सच्चा सिद्ध करने के लिए रो-रो कर फरियाद की। अकबर ने पूरी जांच पड़ताल करने के पश्चात और लाहौर के गवर्नर द्वारा की गई जांच का विवरण लेने के बाद मामले को खारिज कर दिया। झूठा साबित होने के कारण मरवाहे चौधरी का बहुत अपमान हुआ। घर आया तो रिश्तेदारों और इलाके के लोगों ने भी लाहनतें डालीं कि गुरू साहिब के विरूद्ध दूशनबाजी का यही परिणाम निकलना था। नमोशी का मारा चौधरी बीमार हो गया। . ब्राहमणों ने फिर भी षड्यंत्र जारी रखे और एक अंतिम बार करने की सोची। उन्होंने गुरू साहिब के विरूद्ध एक लंबा चौड़ा शिकायतनमा तैयार किया। उस में विस्तार सहित लिखा कि “गुरू साहिब सदियों पुराने धर्म पर वार कर रहे हैं। देवी देवताओं की पूजा, तीर्थ स्थानों की यात्रा, मूर्ति पूजा, पवित्र नदियों की पूजा, पुन्य दान, धार्मिक पारवड आदि का विरोध करके हमारे धर्म में सीधा दखल कर रहे हैं। देव बाणी संस्कृत के स्थान पर पंजाबी बोली का प्रचार कर रहे थे। हमारी धार्मिक पुस्तकों, वेदों, स्मृतियों के स्थान पर पंजाबी बोली का प्रचार कर रहे हैं। हमारी धार्मिक पुस्तकों, वेदों स्मृतियों, शास्त्रों के अनेकों सिद्धांतों को गलत बता रहे हैं। धर्म-पुस्तकों ने हमें (ब्राहमणों को विशेष पद प्रदान किया है। गुरू साहिब व उनके सिख हमारा कोई ध्यान नहीं रखते, बल्कि लोगों में हमारा अपमान कर रहे हैं। आप हम पर कृपा करें और इनके मत प्रचार पर पाबंदी लगाएं। आप हमारे बादशाह हो और हम आपकी प्रजा हैं। इसीलिए हम आपके दर के फरियादी हुए हैं।”
अकबर इन्हीं दिनों (सन 1566 में) लाहौर आया हुआ था। उसका भाई मिर्जा मुहम्मद हकीम काबुल का शाह था और पंजाब को अपने कब्जे में करने की योजनाएं बना रहा था। उस की बगावत को दबाने के लिए अकबर लाहौर आया था। जाति अभिमानियों ने उपरौकत शिकायतनामा अकबर के दरबार में पेश किया। चाहे अकबर अब तक गुरू साहिब की सरगर्मियों से पूरी तरह वाकिफ हो चुका था पर वह ऐसा प्रभाव नहीं देना चाहता था कि उसने बिना जांच पड़ताल के एक पक्षीय फैसला कर दिया है। अतः उसने गुरू अमरदास जी को संदेश भिजवाया कि शिकायतों का निर्णय करने के लिए गुरू जी या तो स्वयं दर्शन दें या किसी प्रतिनिधि को भेजें।
गुरू अमरदास जी को गुरमत का पक्ष पेश करने के लिए सब से योग्य व्यक्ति (गुरू) रामदास जी ही प्रतीत हुए। अत: उनको लाहौर भेजा गया। साथ में बाबा बुढ़ा जी व कुछ और सिखों को भी भेजा गया। (गुरु) रामदास जी ने एक-एक शिकायत को तर्क पूर्ण उत्तर दिया और गुरमत सिद्धांतों की ऐसी व्याख्या की कि दरबारी-विद्वानों की पूरी संतुष्टि हो गई। ब्राहमण पूरी तरह निरुत्तर हो गए। आपने बादशाह को बल्कि यह भी कहा कि धर्म स्थानों अथवा तीर्थों पर जाने वाले हिंदुओं से जो जजिया यानी विशेष टैक्स लिया जाता है, वह न लिया जाए। हिंदू समाज में प्रचलित सती की घृणित प्रथा को रोके जाने की सिफारिश भी की क्योंकि यह स्त्री जाति वर बड़ा अत्याचार है। इस विचार चर्चा के समय अकबर गुरमत सिद्धांतों से बहुत प्रभावित हुआ और उसने गोइंदवाल जा कर गुरू अमरदास जी के दर्शन करने का मन बना लिया। दिल्ली को वापिस जाते हुए वे गुरू दरबार में हाजिर हुए। आम लोगों के साथ पंगत में बैठकर उसने लंगर में भोजन किया। वह लंगर के लिए जागीर देना चाहता था पर गुरू जी ने यह कह कर उसे अस्वीकार कर दिया कि लंगर गुरसिखों के दसवीं यानी आय के दशांश हिस्से से ही चलता हैं।