बासरके में आजीविका - Liveliness in Basarke

बासरके में आजीविका – Liveliness in Basarke (Guru Ram Das Ji)

(गुरू) रामदास जी की नानी की भी आर्थिक दृशा अच्छी नहीं थी। इसलिए उन्होंने अल्पायु में ही घुघणियां (उबले चने व गेहू) बेचनी शुरू कर दी ताकि परिवार का गुजारा हो सके। बासरके में आप पांच साल तक रहे और यही काम करते रहे।

सन 1541 में (गुरू) अमरदास जी के जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण आपने ब्राहमणी प्रभावों वाला कर्मकांडीय जीवन त्याग कर गुरमत गाड़ी राह को अपना लिया। इस साल वे 21वीं बार हरिद्वार गंगा स्नान के लिए गए। वापिसी पर एक ब्रहमचारी साधु के साथ आपका काफी प्रेम हो गया। आप उस को भोजन भी तैयार करके देते थे। ब्रहमचारी साधु बासरके ही आ गया। एक दिन जब उस को पता चला कि उसके भक्त (गुरू) अमरदास जी ने कोई गुरू ही नहीं धारण किया, तो उसने इस बात का बहुत बुरा मनाया। यह कहते हुए कि निगुरे के हाथों भोजन सेवन करने से उसके किये सभी धर्म-कर्म व्यर्थ चले गए हैं, वह वहां से भाग गया। (गुरू) अमरदास जी के मन पर इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा और आप बीबी अमरो जी के द्वारा गुरु अंगद देव जी की शरण में खडूर साहिब आ गए।

चाहे (गुरू) अमरदास जी अधिकांश समय खडूर साहिब रहने लग गए थे पर आप 15-20 दिन पश्चात अपने गांव बासरके हो आते और (गुरू) राम दास जी को जरूर मिलते थे। इस तरह दोनों में निकटता बनी रहीं और (गुरू) रामदास जी के मन में गुरू घर और गुरमत के बारे में प्यार जागृत होना आरंभ हो गया।.

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