श्री अमृतसर साहिब में निवास करते समय श्री गुरू रामदास जी का जो नित्य का व्यवहार था, उसका वर्णन महिमा प्रकाश व सूरज प्रकाश में मिलता है। सतगुरू जी पहर रात रहते जागते ओर शीतल जल से स्नान करके, प्रभ सुमिरन में जुड़ जाते हैं। प्रभात होते ही गुरू के महल से उस स्थान पर आ जाते जहां पर अब श्री हरिमंदर साहिब सुशोभित है। संगत पहले ही उन का इंतजार कर रही होती। दीवान सजता और अमृतमय कीर्तन की वर्षा होती। महिमा प्रकाश (वार्ता) के अनुसार प्रफेर जब प्रभात होता, तब सता रबाबी चउकी भजन की करता। कीर्तन समाप्त होता तो सगर लई आवाज़ा पैदा गुरू जी ते होर सारी समेत रल के लंगर छकदे। इस के पश्चात कुछ समय आराम करते और फिर निर्माण कार्य के निरीक्षण हेतु चल पड़ते। कई बार स्वयं भी सेवा करने लग जाते। दुपैहर के पश्चात, शाम को, फिर दीवान लगता। इस समय आप गुरबाणी की कथा करते और गुरसिखों के धार्मिक प्रश्नों के उत्तर देते तथा गुरमत दृढ़ करवाते।
बहु प्रेमी सिख को जब आवै। तिस कउ शुभ उपदेश बतावै।
गुरसिख सतगुरू जी के मनोहर वचनों को सुनकर निहाल होते और सतगुरू जी से उन के निजी जीवन के अनुभव सुन कर धर्म मार्ग पर चलने के लिए उत्साहित होते।
फिर कुछ समय सैर करने के लिए जाते। जब चार घड़ियां दिन बाकी रहता, रात होने वाली सेती तो सो दर् की चौकी लगवाते और कीर्तन होता। भिन्न-भिन्न रागों में गुरसिख कीर्तन करते, जिससे संगत विस्माद की रंगत में रम जाती और नामरस से आनदित हो उठती :
चार घरी बासर जबि रहै, शबद कीरतन को सुख लहैं ।।४१।। अनिक प्रकारन के हुए राग, राग द्वैख जिन सुनि अघ भाग ।।
भाग जगे ज़िन के हुए लोग लागे स्वाद जिन प्रेम सु पाम् ।।४।।
कीर्तन सभा की समाप्ति पर जब सभी अपने-अपने टिकानों पर चले जाते तो सतगुरू स्वयं यह देखते कि बाहर से आए लोगों को ठौर मिला है कि नहीं। पूरी तसल्ली करने के पश्चात बाद में विश्राम करने के लिए गुरू के महल चले जाते।
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Dalip kumar
Please send me some information about daily life rations.