धार्मिक जागृति – Dharmik Jagriti (Guru Ram Das Ji)
सिख संगत भारी संख्या में गुर – दरबार में आती थी। गुर उपदेश ग्रहण करती और प्रभु के रंग में रम जाती। जब वापिस अपने क्षेत्र में जाती तो गुरू महिमा की कथाएं लोगों को सुनाती। सिद्ध योगी, तपे अन्य साधु संत भी गुरू पातशाह के संग प्रवचन करके चले जाते तो गुर – ज्ञान के चमत्कार को आंखों देखते और गुरू जी की शिक्षाओं की प्रशंसा करते। इस तरह गुरमत प्रचार का काम सहजे ही होने लग गया। आप जी ने मंजीदारों को एकत्र भी किया और उनको धर्म प्रचार का कार्य लगने से निभाने के लिए उत्साहित किया। मंजीदारों को समझाया कि कोई भी अपनी न चलाए। सारे गुरू नानक देव जी के उपदेशों का प्रचार करें, शबद को लंगर लगाएं।
इन्हीं दिनों में ही भाई गुरदास जी जम्मू से प्रचार करके वापिस पहुंचे थे। आप ने उन को आगरा की ओर जा कर धर्म प्रचार करने का आदेश किया। भाई गुरदास जी जहां पंजाबी, संस्कृत व फारसी के विद्वान थे, वहीं हिंदी व बृज भाषा के भी लकड़े विद्वान थे। गुरू जी से आज्ञा ले कर आप आगरा की ओर चले गए।