समाज में से समय के हाकिमों व चौधरियों का भय दूर करना बहुत जरूरी था। यह भय ही था जिसने लोगों को सदियों से गुलाम बनाया हुआ था। गुरु जी ने समझाया कि सभी हुकमरान, सिकदार, नवाब, शाह बादशाह व चौधरी चार दिन के मेहमान हैं। प्रभु की दृष्टि में इन का कोई स्थान नहीं है। वहीं मनुष्य सब से उत्तम है। जिसके हृदय में निर्भय प्रभु बसा हुआ है।
जितने साह पातिसाह उमराव सिकदार चउधरी सभि मिथिआ झूठु भाउ दूजा जाणु ॥ जितने धनवंत कुलवंत मिलखवंत दीसहि मन मेरे सभि बिनसि जाहि जिउ रंगु कसु्मभ कचाणु ॥
ओहु सभ ते ऊचा सभ ते सूचा जा कै हिरदै वसिआ भगवानु ॥ (रागु गौंड महला ४ पृ ८६१)