तपे ने सिक्खी धारण की - Tappa Became a Sikh

तपे ने सिक्खी धारण की – Tappa Became a Sikh (Guru Ram Das Ji)

पंजाब में सिद्धों, योगियों, नाथों को बहुत जोर रहा है। साधारण ग्रामीण जनता पर ये लोग जनता की समझ में न आ सकने वाले कौतुकों के कारण अपना प्रभाव जमाए रखने में काफी सफल रहे हैं। इसी प्रकार साधुओं की एक और श्रेणी, तपे भी, शरीर को कष्ट देने वाले कर्मो (तप साधनाओं द्वारा) लोगों को भ्रमित किए रखते थे। एक टांग पर खड़े हो कर पूजा करना सर्दी के मौसम में पानी में खड़े हो कर तपस्या करना, एकबारगी कितने ही शीतल जल घड़े के पानी से नहाना, ज्येष्ठ आषाढ़ के दिनों में उपलों का घेरा बना कर, उस को आग लगाकर, बीच में बैठ जाना, आदि तप कर्मों के प्रदर्शन केरके लोगों को हैरान करके, ये अपनी शक्ति की धाक जमाते थे। लोग इनकी अन्न, दूध, कपड़ों धन आदि से संवा किया करते थे।

ऐसा ही एक तपा गोइंदवाल में ही रह रहा था। पर गुरू साहिब के प्रचार ने लोगों में उस की दशा को बहुत दयनीय बना दिया था। लोग समझ गए थे कि तपा तो केवल शुहरत का भूखा है, हड हरामी है, धन की लोभी है। न तो उस को अध्यामिक ज्ञान है, न ईश्वर के दर का कुछ पता है और न ही वह लोगों के दुख सुख में उन की कोई सहायता ही कर सकता है।

लोगों में बढ़ती हुई मान्यता के कारण तपो बहुत कुढ़ता रहता था। अज्ञानी मनुष्यों में प्रचार भी करता था कि सिख काहे के धर्मी पुरुष हैं? न तो जप तप करते हैं, और न कोई योग साधना, किसी, वेद शास्त्र को भी नहीं मानते, पुन्यदान, तीर्थ यात्रा नहीं करते, मजार मढ़ियों की पूजा नहीं करते, देवी देवताओं को नहीं मानते, बस अपने गुरू की बाणी का पाठ और कीर्तन हीं करते हैं। जाति अभिमानी, पुरातन पथियों वे अपने चेले चाटड़ों के उकसावे में आ कर, वे एक दिन गुरू दरबार में आ पहुंचा और गुरू पातशाह को कहने लगा : –

तुमरे सिख दीसै अभिमानी बेद, पुरान तीरथ नहीं जानी। तुमरे सिख तुमही को जाने। वाहिगुरू गुरव जाप बखाने। नहीं दीसे इनको धरम सुभाउ (महिमा प्रकाश, सारखी ३, पातशाही ४)

इस प्रकार सिखों की मुक्ति कैसे होगी। इन को स्वर्गों की प्राप्ति कैसे होगी? गुरू जी तपे की चालाकी को ताड़ तो गए पर बहुत धैर्य से उसको समझाया कि यह बातें जो आपने कही हैं हमने उनमें से सिखों को निकाल लिया है। ये अब वेद शास्त्रों की रीतियों व कर्म कांडों के दास नहीं रहे। स्वर्गों की इच्छा, नर्को के भय, सांसारिक सुरवों की प्राप्ति आदि विचारों से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं। अपने अहं का पोषण करने वाले काम नहीं करते। बल्कि सभी मनुष्यों में एक प्रभु की ज्योति जानकर उन की सेवा करते हैं और अपने मन में नम्रता धारण करते हैं। जो कुछ तुम तप-साधना द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते, ये प्रभु के यश गायन (नाम का जाप करके) प्राप्त कर लेते हैं। गुणी निधान प्रभु का गुण गायन करके अपने आपको अटल आत्मिक गुणों से भरपूर कर लेते हैं। इस प्रकार ये पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए लोक परलोक सुहेला कर लेते हैं। तुम तो केवल शरीर को कष्ट देने वाले कर्म करके लोगों में फोकी शोहरत हासिल करते हो या धन आदि प्राप्त करते हो। कुछ लोगों को सेवक भी बना लेते हो, इस से आगे कुछ भी नहीं। न तो ईश्वर के दर का आपको ज्ञान होता है और न ही प्रभु प्रीति का आनंद आप प्राप्त कर सकते हैं। लोगों की सेवा तो क्यों करनी, बल्कि लोगों पर बेकार का भर बने रहते हो। नाम का जाप किया करो। मन संतोष में रहता है सारी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं। त्याग कुर्बानी व सेवा की भावना मन में उठने लगती है। लोक परलोक संवर जाता है।

गुरू साहिब को एक-एक शब्द तपे के मन पर जादुई असर कर रहा था। कर्मकांडों की निरर्थकता को वह जानता ही था। गुरू जी के उपदेश का उसके मन पर इतना प्रभाव हुआ कि वह गुरू जी के चरणों में गिर पड़ा। सिवी दान प्रदान करने की विनती की। सतगुरू जी कृपा के सागर में आए और तपे को सिख संगत में शामिल कर लिया। वह पाखंड त्याग कर सेवा का जीवन व्यतीत करने लगा।

तजि पखंड गुर को सिख होइओ। मिलि सति संगति महि सुरव जोइओ। (सूरज प्रकाश, रास दूसरी, अंश ३)

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