डाक्टर सैयद महम्मद लतीफ ने हिस्टरी आफ दा पंजाब पृष्ठ 253 में लिखा है कि गुरू (रामदास) जी ने अमृतसर की नींव एक केंद्रीय स्थान पर रख कर सिखों का भविष्य बतौर एक कौम के उजागर करने की नींव रखी। अब सिख एक ऐसे साझे धर्म स्थान पर एकत्र होने लग गए जहां पर भिन्न भिन्न स्थानों से पहुंच पाना आसान था और जहां की धरती भी बहुत उपजाऊ थी। इन शांत चित्त व नेक स्वभाव वाले सिखों ने अपने आदि गुरू के पदचिन्हों पर चलने का यत्न करते हुए एक सामूहिक भाईचारे व प्रेम तथा कौमी शक्ति को पक्का करने के प्रयास शुरू किये।
मुहम्मत लतीफ आगे लिखते हैं। “केंद्रीय स्थान पर श्री अमृतसर बना कर गुरू जी ने कौम की नींव रख दी। इस से ऐसा कद्र बन गया जिस के आस-पास सिख आसानी से एकत्र हो सकते थे। सिखों ने एकत्र होने के तौर तरीके भी सीखें और अपने अंदर भक्ति भाव पैदा करके कौमी जज्बे की तार को मजबूत किया।”