आम तुग के अहै उकेरे। मिलवाली भे लस्वहु परेरे। है सुलतान पिंड जिस नामू। तिस ते पश्चम दिस अभिरामू। ताहि जाइ करि अम बणावह। सुंदर आपणे सदन बणावह।
अतः (गुरू) रामदास जी ने गुमटाला, तुंग, सुलतानविंड, गिलवाली आदि गांवों के बीच जमीन खरीद कर सन 1570 के अर्द्धकाल में नया नगर बसाना आरंभ कर दिया। स्वयं ही परियोजना बनाई और अपनी निगरानी में शहर का निर्माण करवाया।
पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए सब से पहले ताल खुदवाने आरंभ किए जिसका नाम संतोख सर रखा। इसके बाद सन 1573 में उस सरोवर का टुक लगाया जो अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है। यह ट्रक दुख भंजनी बेरी के पास लगाया। इस ताल की खुदाई सिख संगत ने तन मन से की। पर सन 1574 में गुरू अमरदास जी के ज्योति में विलीन होने के पश्चात खुदाई का काम बंद हो गया, जो दुबारा सन 1577 में आरंभ किया गया और सन 1581 में संपूर्ण हुआ। सरोवरों की खुदाई के साथ-साथ नये नगर का निर्माण जारी रहा। पहले रहने के लिए घर बनाए गए, जो गुरू के महल कहलाए। उन के साथ लगते व्यापारिक केंद्र का निर्माण किया और उस का नाम गुरू का बाजार रखा गया। नगर का नाम गुरू का चक रखा गया जो बाद में जा कर चूक रामदास, रामदास पुर और अंत में अमृतसर कहलाया। शहर का आखिरी नाम अमृतसर सरोवर के नाम पर अमृतसर ही प्रसिद्ध हो गया।
सन 1574 में गुरू रामदास जी गुरू बने तो यहां पर आ टिके। सिख संगत का आवागमन और बढ़ गया। चहल-पहल और बढ़ गई और शहर की आबादी में काफी बढ़ोत्तरी हुई।
सन 1577 में गुरू रामदास जी ने गांव तुंग वालों तथा 700 अकबरी रूपए में 500 बीघे जमीन और खरीदी क्योंकि शहर की आबादी दिनो-दिन बढ़ रही थी। जब यह बात फैल गई कि नया बस रहा नगर ही सिखी का केंद्र बनना है तो कई व्यवसायों के लोग भी यहां पर आ बसे। भाई सालों च कुछ और गुरू घर के अनन्य सेवकों ने अपने रिश्तेदारों और सज्जनों मित्रों की सहायता से आस-पास के गांवों में से कईयों को प्रेरित करके यहां लाकर बसाया।
बाद में श्री गुरू अर्जुन देव जी ने अमृतसर सरोवर के बीच श्री दरबार साहिब की स्थापना करवाई और उसके बाद गुरू हरिगोबिंद साहिब जी ने श्री अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। इस प्रकार श्री अमृतसर सिखी के केंद्रीय स्थान के तौर पर विकसित हो गया और इस शहर ने अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त की।