ज्योति में विलीन होना - Jyoti Mein Vileen Hona

लाहौर का दौरा

लाहौर से भाई सिहारी मल जी व अन्य सिख संगत की यह प्रबल इच्छा थी कि सतगुरू जी अपनी जन्म भूमि पर एक बार फिर चरण डालें।संगत ने विनतियां भी कीं, संगत के प्रेम को देख कर आप लाहौर आए। बिरादरी के वे लोग, जिन्होंने कभी गुरू जी को गोइंदवाल में सेवा करते हुए देख कर कहा था : ‘सहरे में रहि के मिट्टी ढोवते हो, हमारे बडिओं के सिर खाक डालते हो, सतगुरू जी का प्रताप देख कर चरणों में पड़ गए। सेवा, भक्ति उपकार, दया, उदारता व प्रभु प्रीति आदि गुणों से भरपूर व नम्रता से परिपूर्ण व्यक्तित्व को देख कर, लाहौर वासी गदगद होते जाएं। बड़ा कुआं भी लगवा दिया। यहां पर भी अमृतबेला में कीर्तन होता, आसा की वार लगाई जाती। घर को धर्मशाला बनाने के पश्चात आप भाई सिहारी मल जी के घर आ टिके। गुरू जी के लाहौर टिकने के समय, लाहौर भी अमृतसर साहिब की भांति सिफती दा घर बन गया। कुछ समय पश्चात वे वापिस अमृतसर आ गए।

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