सीस दीआ पर... (Shri Guru Teg Bahadur Ji)

सीस दीआ पर… (Shri Guru Teg Bahadur Ji)

यह एक ऐतिहासिक वास्तविकता है कि श्री तेग बहादुर जी ने धर्म हित आत्म बलिदान दिया| यह अद्भुत असाधारण साका साधन हेतु किय गया| इस सम्बन्ध में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने इस प्रकार कहा है:-

तिलक जंअ राखा प्रभ ताका।। कीनों बड़ो कलू महि साका।। साधिन हेति इती जिनि करी ।। सीसु दिआ पर सी ना उचरी ।।

(बिजिज्ञ, नक)

स्पष्टीकरण हेतु यह लिखना उचित ही है कि गुरु तेग बहादुर जी जब आनंद पुर वापिस आए, तो इस देवपुरी को शान अधिक बढ़ गई| औरंगजेब ने अपनी शासन नीति को सुचारु रूप से चलाने एवं अपनी स्थिति को दृढ़ करने के लिए धार्मिक जीवन व धार्मिक व्यवहार सम्बन्धी जो फैसला किया, वह हिन्दू धर्म तथा हिन्दू-धर्मावलम्बियों को सवैया पीड़ित करनेवाला था|

मासरे-आलम-गीरी में लिखा है कि बादशाह औरंगजेब ने अप्रैल १६६६ ई. को हिन्दुओं के मठ व मन्दिर तोड़ देने के आदेश की घोषणा की| इसके साथ ही उसने हिन्दू धर्म की शिक्षा व पाठ पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया|

बादशाह ने इच्छा व्यक्त की की इस्लाम धर्म का प्रचार भलो भांति किया जाए| इस आदेश का पालन तुरन्त प्रारम्भ हो गया| भारत में प्रसिद्ध बनारस का विश्वनाथ का मन्दिर एवं मथुरा का केशवराय मन्दिर शीघ्र ही इस आदेश के ग्रास बन गए| सभी सूवेदारों ने इस राजाज्ञा का पालन करना प्रारम्भ कर दिया| बूड़ीए में सिक्खों का गुरुद्वारा भी खण्डहरों में परिणत कर दिया गया|

अधिकतर पण्डितों को इस्लाम स्वीकार करने के लिया वाध्य किया गया| सरकार का विचार था कि पण्डितों के इस्लाम में प्रवेश करने के साथ शेष सम्पूर्ण हिन्दू जनता मुसलमान बनने के लिए तैयार हो जाएगी| इस विचार को समक्ष रखते हुए कश्मीर के सूबेदार इफ्तिखार खां ने कश्मीरी पण्डितों को मुसलमान बनाने के कार्य में पूरा बल लगा दिया| पण्डित कृपा राम के नेतृत्व में कश्मीरी पण्डितों की व्यथा की गाथा सुनाने के लिए एक दल गुरु तेगबहादुर जी की सेवा में उपस्थित हुआ| पण्डितों के दुःख की कथा बहुत लम्बी, दुःखपूर्ण एवं हृदय विदारक थी| “शहीद विलास भाई मनी सिंह जी” में कवि सेवासिंह का कथन है –

इधोए विष ज न भए पुरी अनन्द ।। बाँहि असाई पकने गुरु हरि गोबिन्द के चंद ।। हाथ जोर कहियो किरपा राम ।। इतबाह्मण मटन अम् ।। हमरों वस अब २. यौ नहि काई ।। हे गुर तेग बहाद राई ।। फिरत फिरत प्रभ आए थारे ।। याक परे हुन्न तव दरवारे । सेवा हु इम अज गुजारी ।। तुम कलजुग के कृशन मुरारी ।। मार दर ते इम बिघ नै बिरथा कहो मुनाइ । अवर बासना ना हि ऑभ तक्की त सरना ।।

इस कथन का समर्थन ‘भवहीं निम्नलिखित शब्दों से भी होता है

कि नगी नाम सेंटा अराम की पौता नरैदास का, पड़पोता झादाम का यनस ठाकुर दास को भारद्वाज गोत्रा सासुत व्रत ब्राह्मण बाहो मटन पर ना सिरीनगर देस कशमीर खोड का मुख (सोन) बहानों को के चक नानक आइ, परगना कहिनु र मैं, समत सुतरै । बत्तीस जेठ मासै सुदी, इकादमी के न्द

(जेठ सुदौ इकास संमत १७३२) ।”

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