रविवार व्रत की आरती - Ath Shri Ravivar Ji Ki Aarti

रविवार व्रत की आरती – Ravivar Aarti

कहूँ लगि आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकि जोति विराजे || टेक

सात समुन्द्र जाके चरणनि बसे,
कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम |

कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम |

भार उठारह रोमावलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम |

छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे,
कहा भयो नैवेध धरे हो राम |

अमित कोटि जाके बाजा बाजे,
कहा भयो झंकार करे हो राम |

चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रहमा वेद पड़े हो राम |

शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,
नारद मुनि जाको धयान धरें हो राम |

हिम मंदार जाको पवन झंकोरे,
कहा भयो शिर चवर ढुरे हो राम |

लख चोरासी बन्दे छुडाये,
केवल हरियश नामदेव गाये || हो राम

सर्व मनोकामनाओ की पूर्ति हेतु रविवार का वर्त श्रेस्ठ है |

 

इस वर्त की विधि इस प्रकार है:

  • प्रात: काल सनानादी से निवृत हो स्वछ वस्त्र धारण करे |
  • शांतचित होकर परमात्मा का स्मरण करे |
  • भोजन इक समय से ज्यादा नहीं करना चहिये |
  • भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते कर लेना चहिये |
  • यदि निराहार रहने पर सूर्ये छिप जये तो दूसरे दिन सूर्ये उदय हो जाने पर अर्ध्ये देने के बाद भोजन करना चहिये |
  • व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिये |
  • व्रत के दोरान नमकीन व तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण न करें |
  • इस व्रत के करने से मान – सम्मान बढता है तथा शत्रुओं का सये होता है |
  • आँखों को पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाए दूर होती हैं |

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